मध्यप्रदेश

अस्पताल से ही बीमार वकील ने अपने मुवक्किल को राहत दिलाने भरसक प्रयास किया, वीडियो कांफ्रेंसिंग से की जिरहा

 जबलपुर
 हाई कोर्ट की जबलपुर बेंच में भी कार्य-संस्कृति में तकनीकी के शुमार से न्याय-दान प्रक्रिया अपेक्षाकृत सहज-सरल व त्वरित हो गई है। इसी का नतीजा है कि एक जुलाई से लागू नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से सजा निलंबित कराए जाने का पहला कीर्तिमान जबलपुर के एक वकील के नाम दर्ज हो गया है।

अस्पताल में इलाज करा रहे उस युवा वकील के निवेदन को गंभीरता से लेकर हाई कोर्ट ने अपने विवेक का इस्तेमाल किया। इसी के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग से बहस की अनुमति दे दी। फिर क्या था, अस्पताल से ही बीमार वकील ने अपने मुवक्किल को राहत दिलाने भरसक प्रयास किया। जिसका सुपरिणाम राहतकारी आदेश के रूप में सामने आ गया।

नये कानून के प्रकाश में न्याय-दान प्रक्रिया को द्रुतगति

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-2023 के तहत यह पहली सजा निलंबित की गई है।
    मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने यह राहतकारी व्यवस्था अपील अवधि तक के लिए दी गई है।
    अधिवक्ता को अस्पताल से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये बहस की सुविधा भी मिली।
    एक जुलाई, 2024 से लागू नये कानून के प्रकाश में न्याय-दान प्रक्रिया को द्रुतगति मिली।
बिना वक्त गंवाए वीसी के जरिये पैरवी का निवेदन कर दिया

हाई कोर्ट के अधिवक्ता मनोज चतुर्वेदी ने अवगत कराया कि वे अस्पताल में भर्ती थे। इसी दौरान सजा निलंबित कर जमानत स्वीकृत करने की मांग संबंधी अर्जी न्यायमूर्ति विशाल धगट की एकलपीठ के समक्ष विचारण के लिए निर्धारित होने की सूचना मिली। लिहाजा, बिना वक्त गंवाए वीसी के जरिये पैरवी का निवेदन कर दिया। जिसे अविलंब स्वीकार कर लिया गया। दरअसल, विधि व न्याय-क्षेत्र में तकनीक के कमाल का बेहतर परिणाम इसी तरह सामने आ रहा है। इससे अदालती कार्य-संस्कृति में अपेक्षाकृत सहूलियत परिलक्षित हो रही है।

गांजा तस्करी के आरोपित को मिली राहत

अधिवक्ता मनोज चतुर्वेदी ने बताया कि उसके पक्षकार मोडेल उर्फ ब्रजेश पर गांजा तस्करी का आरोप लगा है। इस मामले में पुलिस ने अपराध पंजीबद्ध कर गिरफ्तार किया। साथ ही अदालत के समक्ष पेश कर न्यायिक अभिरक्षा में केंद्रीय कारागार भिजवा दिया। एनडीपीएस कोर्ट ने ट्रायल पूरी होने के साथ ही तीन वर्ष के कारावास व 25 हजार जुर्माने की सजा सुना दी। जिससे व्यथित होकर अपील अवधि तक सजा निलंबित कर जमानत पर रिहाई सुनिश्चित करने की मांग की गई।

दो दिन अस्पताल से, एक दिन घर से की बहस

अधिवक्ता मनोज चतुर्वेदी ने बताया कि मैंने दो दिन अस्पताल में ड्रिप कंटीन्यू रहते और तीसरे दिन अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर से इस मामले में बहस को गति दी। जिसका नतीजा यह निकला कि हाई कोर्ट ने अपील अवधि तक सजा निलंबित करने का राहतकारी आदेश पारित कर दिया। इस तरह भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अंतर्गत किसी आपराधिक मामले में सजा निलंबित कराने का प्रथम प्रकरण मेरी बहस के नाम कीर्तिमान बतौर सदा के लिए दर्ज हो गया। यह मेरे लिए बेहद खुशी का विषय है।

अधिवक्ता पंकज दुबे भी रच चुके हैं कीर्तिमान

हाई कोर्ट के अधिवक्ता पंकज दुबे भी एक जुलाई से लागू किए गए तीन नये कानूनों की रोशनी में आदेश पारित करा चुके हैं। हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विशाल धगट की एकलपीठ ने उनकी दलील सुनने के बाद नवीन नागरिक सुरक्षा संहिता की व्याख्या करते हुए पुलिस को निर्देश दिए थे।

    जांच के बाद यदि संज्ञेय अपराध बनता है तो एफआइआर दर्ज कर आगे की कार्रवाई करें।
    संज्ञेय अपराध नहीं बनता है तो जानकारी शिकायतकर्ता को दें ताकि उचित फोरम जा सके।
    यह पूरा मामला गोटेगांव, नरसिंहपुर निवासी अमीश तिवारी की याचिका से संबंधित था।

शिकायत मिलने के 14 दिन के भीतर जांच करे पुलिस

दतिया निवासी धर्मगुरु गुरुशरण शर्मा द्वारा इंटरनेट मीडिया के माध्यम से बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के संबंध में अनादरपूर्ण पोस्ट वायरल किए जाने के रवैये को चुनौती दी गई है। अधिवक्ता पंकज दुबे ने बहस के दौरान दलील दी थी कि नये कानून भारतीय नागरिक संहिता की धारा 173 के तहत पुलिस का यह दायित्व है कि शिकायत मिलने के 14 दिन के भीतर जांच करें। यदि अपराध असंज्ञेय है तो शिकायतकर्ता को उसकी सूचना दे। चूंकि ऐसा नहीं किया गया, अत: हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई।

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