मध्यप्रदेश

जबलपुर में 500 साल पुरानी बाबड़ियां बन गई जल मंदिर, जानिए कैसे हुए यह चमत्कार

जबलपुर
 500 साल पुरानी
और भव्य बाबड़ियां जिनसे मध्यप्रदेश की संस्कारधानी के नाम से मशहूर जबलपुर की प्यास बुझती थी, लेकिन अतिक्रमण और कचरे की वजह से इनके नामो निशां मिट गए. बदबू की वजह से लोग नाक-भौं सिकोड़ कर इन्हें कचरा घर मान यहां से चले जाते. सिर्फ अड़ोस-पड़ोस के लोगों को ही पता था कि यहां कभी बाबड़ियां थी.

जबलपुर से सांसद रहे और वर्तमान में पीडब्ल्यूडी मंत्री राकेश सिंह को इसकी जानकारी पता लगी तो उन्होंने सफाई अभियान चलाया. जनता को श्रमदान के लिए प्रेरित कर बाबड़ियों में उतरे. सीवेज रूपी दलदल को हाथों से बाहर निकाला. कई दिनों तक राकेश सिंह और लोगों ने श्रमदान कर सफाई की. फिर मोदी सरकार की स्मार्ट सिटी मिशन योजना से पुनुरुद्धार किया गया. अब यह बाबड़ियां टूरिज्म प्लेस बन चुकी हैं. गर्मियों में सुबह-शाम को यहां शहरवासी तफरीह करने आ रहे हैं. बाबड़ियां पानी से लबालब है. पानी इतना साफ है कि जलीय जीवन फिर से पनपने लगी है. मंत्री राकेश सिंह का जलसंरक्षण का यह पहला काम नहीं था, बल्कि जब वे पहली बार 2004 में सांसद बने थे तब से ही प्रयास कर रहे हैं. और इसकी प्रेरणा है पनिया कुआं…

पनिया कुआं ने ऐसे दिखाई राह
अमूमन कोई सांसद या जनप्रतिनिधि लोगों की समस्याएं सुलझाता है. सड़क, नाली, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, सिंचाई व पेयजल आदि पर काम करता है. लेकिन पीडब्ल्यूडी मंत्री राकेश सिंह ने इन सभी कामों के साथ ही कुएं, बाबड़ियों और तालाबों आदि को बचाने और उन्हें फिर से संवारने की मुहिम में भी लगे रहते हैं. राकेश सिंह अपने बचपन के एक किस्से को इसकी वजह बताते हैं. उनके मुताबिक बाल अवस्था में वे रहली में मौसी के घर जाते थे. वहां एक ऐसा कुआं था जो पूरे गांव की प्यास बुझाता था. इसी वजह से इसे लोग पनिया कुआं बोलते थे. वक्त के इसमें पानी कम हो गया. साल 2004-05 में राकेश सिंह पहली बार सांसद बने तो इस गांव में गए. उन्हें पनिया कुआं कचरे से पटा मिला. सिंह कहते हैं कि गांव वालों को भी कुएं की चिंता नहीं थी. पर मेरे अंदर उथल-पुथल मच गई. ऐसे में मैंने तय किया कि लोगों को जल संरक्षण के लिए प्रेरित करूंगा. तब से कुएं, बाबड़ी और तालाबों का जीर्णोंद्धार ही जीवन का मकसद बन गया.

 

जलरक्षा यात्रा से झुलस गया था चेहरा, पर था सुकून
राकेश सिंह बताते हैं सांसद बनने के बाद जबलपुर में एक संग्राम शाह तालाब का जीर्णाद्धार कराया. पुराने गजेटियर में इसे जबलपुर का एयरकंडीशनर कहा गया है. लेकिन 2005-06 में यह तालाब कचरे से पट गया था. लोगों का साथ लेकर इसे संवार दिया. इसी तरह संसदीय क्षेत्र में कई काम हुए. फिर, लोगों में जल और जलस्रोतों को सहेजने की भावना जाग्रत करने के लिए जल रक्षा यात्रा निकाली. गर्मियों में पूरे संसदीय क्षेत्र की पैदल यात्रा की. झुलसा देने वाली गर्मियों में रोजना 20 से 25 किमी पैदल चलकर लोगों को पानी की महत्ता बताई. इस दौरान गांवों में पूराने कुंओं और तालाबों को साफ करवाया. नए तालाब बनवाए. जब यात्रा खत्म हुई तो तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा – आपका तो पूरा चेहरा झुलस गया है. लेकिन मुझे संतोष था कि इतने सारे जल स्रोतों का पुर्नजीवित कर पाया. इन प्रयासों से कई जगह वाटर लेवल बढ़ा और सिंचाई में भी वृद्धि हुई.

जीर्णोद्धार का काम 500 साल पुराने पैटर्न पर किया गया.
जबलपुर में गोंडवाना काल में 52 ताल और बावड़ियां थीं लेकिन धीरे-धीरे इन बावड़ियों और तालाबों पर कब्जे हो गए और इनका अस्तित्व खत्म हो गया. इन्हीं में से एक रानीताल के उजार पुरवा बावड़ी और दूसरी गढ़ा में राधा कृष्ण मंदिर के पास है. मंत्री राकेश सिंह बताते हैं कि जब बाबड़ियों में सफाई के उतरे तो 35 फीट तक कचरा भरा हुआ था. सफाई करना भी कम खतरनाक नहीं था. काई और कीचड़ से भरी सीढ़ियों पर लोगों ने कतारबद्ध होकर तगाड़ियों से कचरा बाहर निकाला. इस दौरान पूरी सावधानी बरती कि बाबड़ियों का मूल स्ट्रक्चर को नुकसान न पहुंचे. इसके बाद स्मार्ट सिटी मिशन से इनके टूटे-फूटे हिस्सों की मरम्मत की गई. इसके लिए सीमेंट की बजाए पूराने तरीके यानी चूना, उड़द दाल आदि से बने मसाले का प्रयोग किया गया.

पीएम मोदी भी कर चुके हैं ट्वीट, आईआईटीयन भी आए
मंत्री सिंह बताते हैं कि जबलपुर की बावड़ियों के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी चर्चा की थी और प्रधानमंत्री के कहने पर ही उन्होंने इन बावड़ियों का नाम जल मंदिर किया है. खुद मोदी ने भी इस काम के लिए सिंह की तारीफ करते हुए ट्वीट किया था. तीन महीने पहले 11 मार्च को इन बाबड़ियों का लोकार्पण किया गया था. इन बाबड़ियों को देखने जल संरक्षण के लिए ख्यात और पद्मश्री महेश शर्मा समेत कई आईआईटीयन भी आ चुके हैं. रहवासी सुनील सिंह बताते हैं कि हम जब टूटी-फूटी इस बाबड़ी को देखते तो यह हमें खंडहर और कचरा घर जैसी लगती थी. अब देखते हैं तो इसकी भव्यता हमें रानी दुर्गावती के अव्वल दर्जे के आर्किटेक्ट का अहसास कराती है. नर्मदा के किनारे जबलपुर बसा है. यानी यहां पर पानी की कमी नहीं रही है. फिर भी रानी ने हर मोहल्ले में ही पानी के लिए बाबड़िया और तालाब (ताल) बनाए. इसी वजह से शहर के कई इलाकों के नाम इन्हीं तालों पर हैं, जैसे कि आधार ताल, चेरी ताल, रानी ताल आदि.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button