अब भारतीय न्याय संहिता में इसे लेकर कानून ही बन गया, इससे लव जिहाद जैसे मामलों से निपटने में आसानी होगी
नई दिल्ली
देश में 'लव जिहाद' के मामलों की काफी चर्चा रही है। ऐसे मामलों से कैसे निपटा जाए, इस पर भी बात होती रही है। लेकिन अब भारतीय न्याय संहिता में इसे लेकर कानून ही बन गया है। इससे लव जिहाद जैसे मामलों से निपटने में आसानी होगी और तय कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्रवाई की जा सकेगी। अब धार्मिक पहचान छिपाकर शादी करने या फिर गुमराह करने के मामलों में भारतीय न्याय संहिता के तहत 10 साल की सजा होगी। इसे भारतीय न्याय संहिता के सेक्शन 69 में वर्णित किया गया है।
इसके तहत ऐसे मामलों को डील किया जाएगा, जिनमें आरोप हो कि संबंधित व्यक्ति ने पहचान छिपाकर विवाह किया है या फिर रिलेशन बनाए। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता रुद्र विक्रम सिंह ने भी अपनी पुस्तक 'दंड संहिता से न्याय संहिता तक' में विस्तार से जानकारी दी है। रुद्र विक्रम सिंह लिखते हैं, 'शादी के नाम पर धोखेबाजी या पहचान छिपाकर शादी करने को अपराध घोषित किया गया है। लव जिहाद जैसे षड्यंत्रों से निपटने के लिए सजा तय की गई है। क्लॉज 69 कहता है कि जो कोई भी धोखे से या महिला से शादी करने का वादा करके उसके साथ यौन संबंध बनाता है और बाद में मुकर जाता है तो ऐसे मामले अपराध की श्रेणी में होंगे। इनमें 10 साल तक की सजा मिलेगी।'
वहीं रेप के मामले में अब तक धारा 376 के तहत कार्रवाई होती थी और रेप की परिभाषा को 375 में तय किया गया था। अब भारतीय न्याय संहिता के सेक्शन 63 में बलात्कार की परिभाषा तय की गई है और 64 में उसके लिए सजा का प्रावधान है। रेप के मामलों में दोषी के लिए कम से कम 10 साल की सजा का प्रावधान है और इसे उम्रकैद तक बढ़ाया जा सकता है। वहीं धारा 70 (2) में नाबालिग से रेप की सजा तय की गई है। 16 साल से कम उम्र की लड़की से रेप की सजा बढ़ाकर 20 साल कर दी गई है। नाबालिग से दुष्कर्म में मौत की सजा का भी प्रावधान है। 12 साल से कम उम्र की नाबालिग से दुष्कर्म में कम से कम 20 साल की सजा या फिर मौत की सजा होगी।
ऐसे अपराधों में तीन साल के अंदर आ जाएगा फैसला
'दंड संहिता से न्याय संहिता तक' में अधिवक्ता रुद्र विक्रम लिखते हैं, 'भारतीय न्याय संहिता लागू होने से तमाम मामले तेजी से निपट जाएंगे। इसके तहत तीन साल से कम की सजा वाले मामलों में समरी ट्रायल किया जाएगा। अब तीन साल से कम की सजा वाले केसों में मजिस्ट्रेट समरी ट्रायल कर सकेगा। इसके तहत पुलिस को 90 दिन में चार्जशीट दाखिल करनी होगी। परिस्थिति के आधार पर अदालत 90 दिन का समय और दे सकती है। इस तरह 180 दिन यानी छह महीने के अंदर चार्जशीट पुलिस को फाइल करनी होगी ताकि ट्रायल शुरू हो सके।