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न्यायपालिका के लिए भी मुसीबत बन गई मणिपुर हिंसा, मणिपुर हाई कोर्ट ने जताई चिंता

इंफाल
मणिपुर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल ने हिंसा की वजह से न्यायपालिका में पैदा हुई अव्यवस्था को लेकर राज्य सरकार पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में हिंसा की वजह से राज्य सरकार कोर्ट के आदेशों का पालन करने में ठीक से सक्षम नहीं है। इसके अलावा न्यायपालिका की सुरक्षा और इन्फ्रास्ट्रक्चर डिमांड भी पूरी नहीं हो पा रही है। बता दें कि जस्टिस मृदुल 2008 में दिल्ली हाई कोर्ट के जज बने थे। वर्तमान में उनका नाम देश के सीनियर जजों में शामिल है। अक्टूबर 2023 में उन्हें मणिपुर हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया था।

जस्टिस मृदुल ने कहा कि न्यायिक तंत्र के लिए काम करने में राज्य की सरकार सक्षम नहीं है। उन्होंने बताया कि राज्य में हो रही हिंसा की वजह से न्यायपालिका को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसके चलते जूडिशल पोस्टिंग, ढांचागत विकास और जरूरतों को पूरा होने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। जस्टिस मृदुल ने कहा कि जिन इलाकों में हिंसा हो रही है वहां जूडिशल पोस्टिंग करना कठिन है। इसके अलावा मेजॉरिटी कम्युनिटी वाले लोगों को चुराचांदपुर, कांगपोकपी और मोरेह इलाके में पोस् नहीं किया जा सकता है। ऐसे में पोस्टिंग लेकर विकल्प सीमित हो गए हैं। केवल आदिवासी कर्मचारियों को ही वहां पोस्ट किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पोस्टिंग के लिए इंटरव्यू लिए गए हैं लेकिन पोस्टिंग फाइनल करने के लिए सरकार की जरूरत है। हाल यह है कि एक जिला जज को ही फैमिली कोर्ट, एनडीपीएस जज और सेशल जज की भी जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है।

उन्होंने कहा कि इन्फ्रास्ट्रक्च को लेकर अलग चुनौती है। बहुत सारे कोर्ट सरकारी इमारत से बाहर काम कर रहे हैं। वहां कोर्टरूम और अन्य कामों के लिए कक्ष भी मौजूद नहीं हैं। तामेनग्लोंग, काकचिंग और उखरुल जिलों में इन्फ्रास्ट्रक्चर को लेकर काम शुरू किया गया था जो कि बाधित हो गया है। हिंसा की वजह से ट्रांसपोर्टेशन महंगा हो गया है। वहीं हाल में बाढ़ की वजह से भी इन्फ्रास्ट्रक्चर पिछड़ रहा है।

उन्होंने कहा कि कर्मचारियों की पोस्टिंग उसी इलाके में करनी है जहां उनकी सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सके। मैतियों के इलाके में गैर मैती कर्मचारी काम करने को तैयार नहीं है। उसके लिए यह जीवन या मरण का प्रश्न बना हुआ है। उन्होंने  बताया कि पद संभालने के बाद उन्होंने राज्य की सरकार से कहा था कि न्यायिक अधिकारियों को सुरक्षा उपलब्ध करवाई जाए। अब तो मुझे लगता है कि हर इलाके में सुरक्षा की जरूरत है क्योंकि हिंसा अचानक भी भड़क जाती है। उन्होंने बताया कि सरकार ने पूरी तरह से आदेश का अनुपालन नहीं किया है। बहुत सारे फैसले अब भी सरकार के पास लंबित हैं.

उन्होंने कहा कि सरकार के साथ भी लगातार संपर्क रखा जाता है। कई बार मुख्यमंत्री के सामने भी न्यायपालिका की जरूरतों को रखा गया। बहुत स्पष्ट बात है कि उन्होंने प्रतिक्रिया तो दी लेकिन वह बहुत संतोषजनक नहीं थी। जैसे  कि उनके पास कोई कानून सचिव नहीं है। हमने कहा था कि आप एक न्यायिक अधिकारी की नियुक्ति करिए। उनके पास कानून आयुक्त है लेकिन हम नहीं चाहते कि कोई नौकरशाह इस काम को देखे। हमें न्यायिक अधिकारी की जरूरत है। न्यायिक अधिकारी सरकार और न्यायपालिका के बीच पुल का काम करता है।

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