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राजस्थान की लंबे समय से सुरक्षित जयपुर सीट पर कम मार्जिन में भी भाजपा मजबूत

जयपुर.

जयपुर लोकसभा सीट लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी के लिए सुरक्षित सीट रही है। यहां बीजेपी ने सबसे पहले 1989 में अपना खाता खोला था। इसके बाद लगातार 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 के चुनाव में बीजेपी के कद्दावर नेता गिरधारीलाल भार्गव जीतते रहे। हालांकि 2009 के चुनाव में एक बार कांग्रेस ने पांच साल के लिए बीजेपी का विजय रथ रोक लिया था और कांग्रेस के महेश जोशी सांसद बने थे लेकिन 2014 और 2019 में फिर से बीजेपी के रामचरण बोहरा ने जीत का परचम लहराया।

2024 के लोकसभा चुनाव में जयपुर समेत राज्य की 12 लोकसभा सीटों पर पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान हुआ। इस बार कुल 63.48 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है, जो कि 2019 के 68.4 फीसदी मतदान से लगभग 5 फीसदी कम है। 2019 में रामचरण बोहरा को 9 लाख 24 हजार वोट मिले थे और उनकी जीत का मार्जिन 4 लाख 30,000 वोटों का था लेकिन इस बार कम मतदान के कारण जीत के मार्जिन पर असर पड़ सकता है। जयपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीटों में मालवीय नगर से कालीचरण सराफ, सांगानेर से भजनलाल शर्मा, सिविल लाइंस से गोपाल शर्मा, हवा महल से बालमुकुंद आचार्य, झोटवाड़ा से कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़, विद्याधर नगर से दीया कुमारी (सभी बीजेपी) और किशनपोल से अमीन कागजी, आदर्श नगर से रफीक खान (दोनों कांग्रेस) विधायक हैं। कुल मिलाकर जयपुर जिले की आठ विधानसभा सीटों से गठित इस लोकसभा क्षेत्र में केवल किशनपोल और आदर्श नगर को छोड़कर बाकी छह विधायक बीजेपी के हैं।

चुनावों के लिए किसी दमदार प्रत्याशी का न मिल पाना कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी मजबूरी है और यही कारण है कि हर चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी बदल जाते हैं। बार के चुनावों में कांग्रेस ने पूर्व कैबिनेट मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास को भाजपा की पहली बार की उम्मीदवार मंजू शर्मा के सामने मैदान में उतारा है। खाचरियावास के पास लंबा राजनीतिक अनुभव है, जबकि मंजू शर्मा के पास राजनीतिक अनुभव नहीं है लेकिन उनके पिता भंवर शर्मा की राजनीतिक विरासत और बीजेपी की मजबूत किलाबंदी उनके साथ है। बहरहाल जयपुर की राजनीतिक स्थिति को देखते हुए भाजपा का पलड़ा भारी माना जा सकता है, लेकिन कम मतदान के साथ ही प्रत्याशी चयन जीत के मार्जिन को कम कर सकता है।

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