उदयपुर के निजी अस्पताल की लापरवाही ने छीन लीं नवजात की आंखें
उदयपुर.
शहर के मैगनस अस्पताल की लापरवाही के कारण अपनी नवजात की आंखें खो चुके पीड़ित दंपति ने आपबीती सुनाने के लिए शनिवार को एक पत्रकार वार्ता आयोजित की। दंपति योगेश जोशी व अपूर्वा ने बताया कि रुटीन चेकअप में सभी रिपोर्ट सही होने के बावजूद डॉ. शिल्पा गोयल ने अपूर्वा का सात माह में ही प्रसव कर दिया। डॉक्टर का कहना था कि एमनियोटिक फ्लूड कम होने के कारण ऑपरेशन करना पड़ेगा। जबकि यही जांच अर्थ डायग्नोस्टिक सेंटर पर करवाई तो फ्लूड की रेंज सही थी।
योगेश ने बताया कि प्रीमैच्योर बच्ची को अस्पताल वालों ने 21 दिन तक एनआईसीयू में रखा, जिसका बिल 4 से 5 लाख तक बन गया। इसके बाद शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. मनोज अग्रवाल ने लापरवाही बरतते हुए नवजात कि आंखों का आरओपी टेस्ट नहीं करवाया, जिससे नवजात की आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गईं। जब नवजात तीन माह का हुआ तो उसकी आंखें एक जगह स्थिर नहीं रहकर 360 डिग्री पर रोटेट हो रही थीं। जिसके चलते उन्होंने बच्चे को एएसजी अस्पताल में दिखाया, जहां से उन्हें एम्स दिल्ली में सर्जरी करवाने के लिए कहा गया। इस दौरान डॉ. मनोज अग्रवाल ने एम्स में अपॉइंटमेंट लेने के बहाने बुलाया और डिस्चार्ज समरी बदलकर और उसमें आरओपी टेस्ट लिख दिया। बच्चे को लेकर एम्स पहुंचे दंपति को वहां के डॉक्टर ने कहा कि जन्म से 30 दिन में आरओपी टेस्ट हो जाता तो रोशनी आ सकती थी लेकिन अब बच्चे के आंखों की रोशनी आने की उम्मीद नहीं है।
मामले में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. शिल्पा गोयल का कहना है कि मरीज अपूर्वा जोशी को अनियंत्रित मधुमेह, ऑलिगोहाइड्रामनिओस, भ्रूण विकास मंदता और एमनियोटिक फ्लूड की मात्रा कम होने के साथ उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था थी, ऐसे में गर्भस्थ शिशु को नुकसान हो सकता था, इसलिए उनकी सहमति से ही डिलीवरी करवाई गई थी।