देश

मतदान डाटा सार्वजनिक करने की मांग कर रहे याचिकाकर्ताओं को ‘सुप्रीम’ झटका, कोर्ट ने आदेश देने से किया इंकार

नई दिल्ली
 सुप्रीम कोर्ट ने आज (24 मई) चुनाव आयोग को राहत भरी खबर सुनाई है। मतदान के पूरे आंकड़े देरी से जारी होने पर सवाल उठाने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की। कोर्ट ने लोकसभा चुनाव के दौरान मतदान प्रतिशत के आंकड़े उसकी वेबसाइट पर अपलोड करने के संबंध में कोई निर्देश देने से इनकार कर दिया है।

फॉर्म 17 सी को वेबसाइट पर अपलोड करना सही नहीं: चुनाव आयोग

बता दें कि लोकसभा चुनाव में मतदान के 48 घंटे के भीतर प्रत्येक मतदान केंद्र पर डाले गए मतों के आंकड़े वेबसाइट पर डालने की मांग वाली एक याचिका पर कोर्ट ने सुनवाई की। अदालत ने यह फैसला सुरक्षित रख लिया है। बता दें कि एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने याचिका दायर की थी। चुनाव आयोग ने कोर्ट से कहा कि फॉर्म 17 सी (प्रत्येक मतदान केंद्र पर डाले गए वोटों के आंकड़े) को वेबसाइट पर अपलोड करना उचित नहीं होगा।

न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और एस.सी. शर्मा की पीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की। चुनाव आयोग ने शीर्ष अदालत को बताया कि सभी मतदान केंद्रों पर दर्ज वोटों की जानकारी वेबासइट पर अपलोड करने से चुनावी प्रक्रिया में अराजकता की स्थिति पैदा हो जाएगी।

याचिकाकर्ता वोटर्स को भ्रमित कर रहे: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि चुनाव के 5 चरण हो चुके। अभी चुनाव आयोग पर प्रक्रिया बदलने के लिए दबाव डालना सही नहीं होगा। चुनाव आयोग के वकील मनिंदर सिंह ने कहा था कि याचिकाकर्ता ADR का मकसद वोटर को भ्रमित करना है। ADR की मंशा पर सवाल उठाते हुए SC ने एक याचिका 26 अप्रैल को ही खारिज की थी।

चुनाव को बदनाम करने की कोशिश की जा रही: ईसी

सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग की ओर से यह बात कही गई कि कि फॉर्म 17C को स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है। आरोप लगाया गया है कि फाइनल डेटा में 5 से 6 प्रतिशत का फर्क है। यह आरोप पूरी तरह से गलत है। चुनाव को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।  

एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स द्वारा दायर एक आवेदन पर 24 मई को शीर्ष अदालत में सुनवाई से पहले चुनाव आयोग ने एक हलफनामा दायर कर यह दावा किया। हलफनामे में कहा गया है कि फॉर्म 17 सी के पूर्ण खुलासे से शरारत हो सकती है। इससे पूरे चुनावी प्रक्रिया को नुकसान होगा।

चुनाव आयोग ने कहा कि वेबसाइट पर फॉर्म 17सी (प्रत्येक मतदान केंद्र पर डाले गए वोटों के आंकड़े) डालना उचित नहीं होगा। चुनाव आयोग ने यह भी दावा किया कि पहले दो चरणों में अंतिम मतदान आंकड़े में 5 से 6 फीसदी की वृद्धि के संबंध में लगाए गए आरोप भ्रामक और निराधार थे।

आयोग ने यह भी कहा कि चुनाव के अंतिम दो चरणों में प्रक्रिया बदलना चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप होगा और यह संविधान के अनुच्छेद 329 (बी) (चुनाव याचिका को छोड़कर संसद या विधानसभा के किसी भी चुनाव पर सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए) के तहत होगा।

उच्चतम न्यायालय से चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि उम्मीदवार या उसके एजेंट के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को फॉर्म 17सी प्रदान करने का कोई कानूनी आदेश नहीं है। याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता चुनाव अवधि के बीच में एक आवेदन दायर करके एक अधिकार बनाने की कोशिश कर रहा है, जबकि कानून में ऐसा कुछ भी नहीं है। याचिका में यह भी तर्क दिया कि मतदान केंद्र के पास फॉर्म 17सी अपलोड करने के लिए कोई साधन नहीं है।

याचिका में चुनाव आयोग को मौजूदा लोकसभा चुनावों के प्रत्येक चरण के मतदान के 48 घंटों के भीतर अपनी वेबसाइट पर मतदान केंद्र-वार मतदान प्रतिशत डेटा अपलोड करने का निर्देश देने की मांग की गई है। चुनाव आयोग ने कहा कि 19वीं लोकसभा के लिए चुनाव पहले से ही चल रहे हैं। सात चरणों में से पांच चरण पहले ही समाप्त हो चुके, जबकि शेष दो चरण 25 मई और 1 जून को होने हैं।

याचिका में दावा किया गया है, “कुछ ऐसे तत्व और निहित स्वार्थ भी हैं जो किसी भी तरह से इसे बदनाम करने के लिए चुनाव आयोग द्वारा हर चुनाव के आयोजन के समय के करीब निराधार और झूठे आरोप लगाकर संदेह का अनुचित माहौल बनाते रहते हैं।”

चुनाव आयोग ने दावा किया कि याचिका फिलहाल सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि इसी तरह के मुद्दे उठाए गए थे, जिसके परिणामस्वरूप 26 अप्रैल 2024 को ईवीएम के उपयोग के संबंध में फैसला सुनाया गया।

चुनाव आयोग ने अदालत के समक्ष यह भी तर्क दिया कि मामले में रिट याचिका 2019 से लंबित है, लेकिन तत्काल आवेदन “ईवीएम से मतपत्रों तक अभियान के लिए समर्थन हासिल करने के लिए पूर्वाग्रह, संदेह, संदेह और प्रक्रिया की अखंडता पैदा करने” के लिए मतदान के बीच में दायर किया गया है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button