सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार की महत्ता पर भारत, अन्य देशों के साथ बातचीत कर रहे हैं: अमेरिका
डिजिटल विभाजन पाटने के लिए मिलकर काम कर रहे भारत, अमेरिका: पूर्व अमेरिकी अधिकारी
सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार की महत्ता पर भारत, अन्य देशों के साथ बातचीत कर रहे हैं: अमेरिका
अमेरिका ने बांग्लादेश के पूर्व सेना प्रमुख जनरल अजीज अहमद पर लगाए प्रतिबंध
वाशिंगटन
अमेरिका के राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास एवं कार्यालय ‘व्हाइट हाउस’ की एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि भारत और अमेरिका पश्चिम एवं ग्लोबल साउथ के बीच डिजिटल विभाजन को पाटने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं और दोनों देश कृत्रिम मेधा (एआई) के ‘‘जिम्मेदाराना एवं सुरक्षित’’ उपयोग के खाके को आकार देने में मदद कर रहे हैं।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में ‘व्हाइट हाउस’ की अधिकारी रहीं लीसा कर्टिस ने ‘मोटवानी जड़ेजा भारत-अमेरिका वार्ता श्रृंखला’ के तहत सोमवार को ‘‘रणनीतिक तालमेल: भारत-अमेरिका प्रौद्योगिकी सहयोग’’ विषय पर चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि दोनों देश साइबर सुरक्षा और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की सुरक्षा में एआई के उपयोग को बढ़ावा देने के मामले में सहयोग कर रहे हैं।
कर्टिस ने कहा, ‘‘हम पश्चिम एंव ग्लोबल साउथ के बीच डिजिटल विभाजन को पाटने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं।’’ उन्होंने ‘हडसन इंस्टीट्यूट’ थिंक-टैंक द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कहा, ‘‘मुझे लगता है कि पिछले साल विशेष रूप से डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे पर जी20 में भारत के नेतृत्व ने दिखाया कि वह इस प्रयास में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम एक साथ मिलकर एआई के जिम्मेदाराना और सुरक्षित उपयोग के खाके को आकार देने में मदद कर रहे हैं।’’
कर्टिस ने कहा, ‘‘ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे दोनों देशों के साझा प्रौद्योगिकी मूल्य हैं जो नवाचार की संस्कृति पर जोर देते हैं। ये ऐसे भी नियम हैं जो मानव जीवन एवं मानव गरिमा और प्रगति को हमारे एआई अनुसंधान और विकास के केंद्र में रखते हैं।’’ उन्होंने साथ ही कहा कि यह कल्पना करना कठिन है कि रूस एवं भारत के करीबी रक्षा संबंध भविष्य में अमेरिका एवं भारत के रक्षा संबंधों को प्रभावित नहीं करेंगे।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि भारत को भरोसा है कि वह रूस एवं अमेरिका के साथ अपने संबंधों को अलग-अलग रख सकता है और ऐसा ‘फायरवॉल’ लगा सकता है जो अमेरिकी प्रौद्योगिकी की सुरक्षा कर सकेगा।’’
कर्टिस ने कहा, ‘‘लेकिन मुझे लगता है कि भारत अब भी रूसी मंचों पर बहुत अधिक निर्भर है तो ऐसे में अमेरिका अपने सुरक्षित नेटवर्क को भारतीय मंचों से जोड़ने और संवेदनशील रक्षा जानकारी साझा करने को लेकर सतर्क और अनिच्छुक रहेगा।’’
‘अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी मंच’ के विक्रम सिंह ने कहा कि अमेरिका और भारत के बीच आधिकारिक स्तर पर बहुत गहरे संबंध हैं और 90 के दशक के अंत में भारतीय परमाणु परीक्षण के बाद संबंधों के सबसे निचले स्तर पर पहुंचने के बाद अब रिश्ते में सुधार हो रहा है।
अमेरिका में भारत की उप राजदूत श्रीप्रिया रंगनाथन ने कहा कि भारत और अमेरिका के रणनीतिक उद्देश्यों और साझा मूल्यों के मद्देनजर दोनों देश स्वाभाविक भागीदार हैं।
सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार की महत्ता पर भारत, अन्य देशों के साथ बातचीत कर रहे हैं: अमेरिका
वाशिंगटन
अमेरिका के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि देश के राष्ट्रपति जो बाइडन का प्रशासन सभी की धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करने एवं उसके लिए प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध है और वह सभी धार्मिक समुदायों के सदस्यों के साथ समान व्यवहार की महत्ता को लेकर भारत समेत कई देशों के साथ बातचीत कर रहा है।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने अपने दैनिक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘हम सभी धार्मिक समुदायों के सदस्यों के साथ समान व्यवहार की महत्ता पर भारत समेत कई देशों के साथ बातचीत कर रहे हैं।’’
‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ में हाल में प्रकाशित ‘स्ट्रेंजर्स इन देयर ओन लैंड: बीइंग मुस्लिम इन मोदीज इंडिया’ (अपने ही देश में अजनबी: मोदी के भारत में मुस्लिम होना) शीर्षक वाले एक लेख में आरोप लगाया गया है कि भारत में दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम समुदाय भय और अनिश्चितता के माहौल में अपने परिवारों और बच्चों का पालन-पोषण कर रहा है। मिलर इसी से जुड़े सवाल का जवाब दे रहे थे। मिलर से पूछा गया, ‘‘क्या आपने इस मामले पर भारतीय अधिकारियों से बातचीत की है।’’
इसके जवाब में मिलर ने कहा, ‘‘मैं निजी राजनयिक बातचीत के बारे में बात नहीं करूंगा लेकिन हम पूरी दुनिया में किसी भी धर्म या आस्था को मानने की स्वतंत्रता के अधिकार के सम्मान की रक्षा करने एवं उसे बढ़ावा देने के लिए गहनता से प्रतिबद्ध हैं।’’
सप्ताहांत में प्रकाशित लेख में आरोप लगाया गया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने पद संभालने के बाद से ‘‘धर्मनिरपेक्ष ढांचे और मजबूत लोकतंत्र को कमजोर कर दिया है।’’ भारत पहले भी इस प्रकार के आरोपों को खारिज करता रहा है। उसका कहना है कि ये आरोप देश के बारे में ‘‘गलत सूचना एवं त्रुटिपूर्ण समझ’’ पर आधारित हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि उन्होंने अल्पसंख्यकों के खिलाफ कभी एक शब्द भी नहीं कहा और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) केवल आज ही नहीं, बल्कि कभी भी अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं रही। प्रधानमंत्री ने हालांकि स्पष्ट किया कि वह किसी को भी ‘‘खास नागरिक’’ (स्पेशल सिटीजन) के तौर पर स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।
मोदी ने एक संचार एजेंसी के साथ साक्षात्कार में ये बातें कहीं। विपक्ष ने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री के चुनावी भाषण समाज को बांटने वाले और ध्रुवीकरण करने वाले हैं। इन आरोपों के बीच मोदी की यह टिप्पणी अल्पसंख्यकों को लेकर उनका अब तक का सबसे स्पष्ट बयान है।
अमेरिका ने बांग्लादेश के पूर्व सेना प्रमुख जनरल अजीज अहमद पर लगाए प्रतिबंध
वाशिंगटन
अमेरिका ने बांग्लादेश सेना के पूर्व प्रमुख अजीज अहमद पर भ्रष्टाचार में कथित संलिप्तता के कारण प्रतिबंध लगाते हुए कहा कि उनके कदमों ने बांग्लादेशी लोकतांत्रिक एवं सार्वजनिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं में लोगों के भरोसे को कमजोर किया।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा, ‘‘अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने बांग्लादेश सेना के पूर्व प्रमुख अजीज अहमद पर बड़े भ्रष्टाचार में संलिप्तता के कारण प्रतिबंध लगाने की आज सार्वजनिक रूप से घोषणा की।’’
मिलर ने कहा, ‘‘उनके (अहमद के) कदमों ने बांग्लादेश के लोकतांत्रिक एवं सार्वजनिक संस्थानों और प्रक्रियाओं में जनता के विश्वास को कम करने में योगदान दिया है।’’ उन्होंने कहा कि अजीज अहमद ने बांग्लादेश में आपराधिक गतिविधियों के लिए जवाबदेही से बचने में अपने भाई की मदद करने के लिए सार्वजनिक प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप करके बड़ा भ्रष्टाचार किया।
मिलर ने कहा कि अजीज ने अपने भाई के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करने के लिए भी काम किया कि सैन्य अनुबंध अनुचित तरीके से दिए जाएं और वे अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए सरकारी नियुक्तियों के बदले में रिश्वत ले सकें।
उन्होंने कहा, ‘‘यह प्रतिबंध बांग्लादेश में लोकतांत्रिक संस्थानों एवं कानून के शासन को मजबूत करने की अमेरिकी प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है। अमेरिका सरकारी सेवाओं को अधिक पारदर्शी एवं किफायती बनाने, व्यापार एवं नियामक संबंधी माहौल में सुधार करने और धनशोधन एवं अन्य वित्तीय अपराधों की जांच करने एवं उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए क्षमता निर्माण में सहायता करके बांग्लादेश में भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों का समर्थन करता है।’’
हिमोफिलिया के मरीजों को संक्रमित खून चढ़ाने के पांच दशक पुराने मामले में प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने माफी मांगी
लंदन
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने देश में 1970 के दशक में हिमोफिलिया मरीजों को संक्रमित खून चढ़ाने के प्रकरण को दबाने का आरोप लगाए जाने के बादसार्वजनिक माफी मांगी है। सुनक ने यह माफी सरकार को सौंपी गई एक जांच रिपोर्ट में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) की लापरवाही वाले रवैए के बाद मांगी है।
जांच समिति के अध्यक्ष सर ब्रायन लैंगस्टाफ द्वारा इस मुद्दे पर अपना कड़ा फैसला सुनाए जाने के कुछ घंटों बाद संसद के निचले सदन ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में सुनक ने कहा कि जांच में उल्लिखित ‘‘विफलताओं और इनकार के रवैये’’ के बाद यह ब्रिटेन के लिए शर्म का दिन है।
ब्रिटेन में संक्रमित रक्त प्रकरण की जांच में सोमवार को पाया गया कि अधिकारियों और लोक स्वास्थ्य सेवा ने जानकारी होने के बावजूद हजारों मरीजों को संक्रमित रक्त हिमोफिलिया के मरीजों को चढ़ाया गया जिससे वे दूसरी गंभीर बीमारियों से संक्रमित हो गए और इससे उनकी मौत हो गई।
यह माना जाता है कि ब्रिटेन में, 1970 के दशक से लेकर 1990 के दशक के शुरुआती वर्षों तक एचआईवी या हेपटाइटिस से संक्रमित रक्त चढ़ाने से करीब 3,000 लोगों की मौत हुई। इस प्रकरण को 1948 से ब्रिटेन की सरकार संचालित राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) के इतिहास में सबसे घातक आपदा माना जाता है।
सुनक ने पीड़ितों और उनके परिवारों को संबोधित करते हुए कहा, मुझे यह समझना लगभग असंभव लगता है कि यह कैसा महसूस हुआ होगा… मैं दिल से और स्पष्ट रूप से माफी मांगना चाहता हूं।
प्रधानमंत्री ने कहा, मौजूदा और 1970 के दशक की हर सरकार की ओर से, मुझे वास्तव में खेद है। उन्होंने सभी पीड़ितों को मुआवजा देने की पुष्टि की।
पूर्व न्यायाधीश लैंगस्टाफ ने आपदा को टालने में नाकाम रहने के लिए तत्कालीन सरकारों और चिकित्सा पेशेवरों की आलोचना की है। उन्होंने पाया कि आपदा को छिपाने के लिए जानबूझकर प्रयास किए गए और सरकारी अधिकारियों द्वारा सबूत नष्ट करने के साक्ष्य हैं।
लैंगस्टाफ ने कहा, यह आपदा एक दुर्घटना नहीं थी। संक्रमण इसलिए हुए कि प्राधिकार-चिकित्सक, रक्त सेवा प्रदाता और तत्कालीन सरकारों ने मरीजों की सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं दी।
प्रभावित हुए ज्यादातर लोग ‘हिमोफिलिया’ से ग्रसित थे। ऐसे मरीजों के रक्त में थक्का नहीं बनता है और उनको अतिरिक्त रक्त की आवश्यकता होती है। 1970 के दशक में मरीजों को नया उपचार दिया गया जिसे ब्रिटेन ने अमेरिका से अपनाया था। कुछ प्लाज्मा, कैदियों सहित ऐसे लोगों का था जिन्हें रक्त के एवज में भुगतान किया गया था।
जांच रिपोर्ट के अनुसार, करीब 1,250 लोग रक्स्राव की समस्याओं से ग्रसित थे जिनमें 380 बच्चे थे। ये लोग एचआईवी संक्रमित चढ़ाने से संक्रमित हुए थे। उनमें से तीन-चौथाई की मौत हो गई, जबकि 5,000 लोग ‘हेपटाइटिस सी’ से ग्रसित हो गए जो एक प्रकार का यकृत संक्रमण है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बीच, संक्रमित रक्त चढ़ाने पर करीब 26,800 अन्य लोग भी ‘हेपटाइटिस सी’ से संक्रमित हुए। करीब 1,500 पीड़ितों का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता डेस कोलिन्स ने रिपोर्ट के प्रकाशन को ‘‘सच्चाई का दिन’’ करार दिया।
जूलियन असांजे को अमेरिका प्रत्यर्पित करने के खिलाफ ब्रिटेन की अदालत ने अपील की अनुमति दी
लंदन
ब्रिटेन की एक अदालत ने सोमवार को कहा कि विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे जासूसी के आरोप में उन्हें अमेरिका प्रत्यर्पित करने के आदेश के खिलाफ अपील कर सकते हैं।
उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों ने कहा कि असांजे के पास ब्रिटेन सरकार के प्रत्यर्पण आदेश को चुनौती देने का आधार है। उच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद असांजे के लिए अपील करने का रास्ता साफ हो गया है, जिसके बाद अब यह कानूनी लड़ाई वर्षों तक खिंच सकती है।
असांजे पर जासूसी के 17 आरोप और लगभग 15 साल पहले उनकी वेबसाइट पर अमेरिकी दस्तावेजों के प्रकाशन को लेकर कंप्यूटर के दुरुपयोग का एक आरोप है। ऑस्ट्रेलियाई मूल के असांजे ने सात साल तक लंदन में इक्वाडोर के दूतावास में शरण लेने के बाद पिछले पांच साल ब्रिटेन की जेल में बिताए हैं।
अमेरिकी अधिकारी चाहते हैं कि असांजे को विकिलीक्स पर हजारों गोपनीय दस्तावेजों को प्रकाशित करके कथित तौर पर लोगों का जीवन खतरे में डालने के लिए मुकदमे का सामना करना पड़े जबकि बचाव पक्ष के वकीलों ने दलील दी है कि असांजे के खिलाफ मामला राजनीति से प्रेरित है।
अमेरिका ने यूक्रेन को हथियार भेजते रहने की प्रतिबद्धता जताई
वाशिंगटन
रूस के हमलों से जूझ रहे यूक्रेन को अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने पूर्वी यूरोपीय देश को अमेरिकी हथियार भेजते रहने की सोमवार को प्रतिबद्धता जताई।
ऑस्टिन और यूरोप तथा दुनियाभर के लगभग 50 रक्षा मंत्री यूक्रेन को अधिक सैन्य सहायता भेजने संबंधी कार्य में समन्वय के लिए बैठक कर रहे हैं। यूक्रेन रूस के कब्जे वाले क्रीमिया प्रायद्वीप पर अपना बड़ा हमला शुरू करते हुए उत्तर-पूर्व में रूसी हमले को रोकने की कोशिश कर रहा है।
अमेरिकी रक्षा मंत्री ने कहा कि हम चुनौती के क्षण में मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि यूक्रेन के खारकीव शहर पर रूस द्वारा नए सिरे से किए गए हमले से पता चलता है कि यूक्रेन को हथियार भेजते रहना क्यों आवश्यक है।