लंबे जीवन का राज जानने, दिल्ली एम्स ने शुरू की स्टडी, 36 महीने के प्रोजेक्ट में चलेगा पता
नई दिल्ली
हर इंसान चाहता है कि वह लंबी उम्र जिए। कोई इस धरती पर जल्दी रुखसत होना नहीं चाहता। ऐसा होता भी है कि हमारे घर के बुजुर्ग 90-100 साल की उम्र को पार कर जाते हैं और कई तो स्वस्थ भी रहते हैं। इससे इतर क्या आपने कभी सोचा है कि लंबे जीवन का रहस्य क्या है? दिल्ली एम्स में इसे लेकर अब अध्ययन शुरू हो गया है। इस अध्ययन में यह पता लगाने की कोशिश की जाएगी कि एक ही परिवार में कई पीढ़ियों तक लोग कैसे लंबा जीवन जीते हैं। डॉक्टरों के अनुसार, इस शोध का मकसद यह समझना है कि उम्र बढ़ने के साथ शरीर में क्या बदलाव होते हैं और लोग कैसे स्वस्थ रहकर लंबा जीवन जी सकते हैं
रिसर्चर्स कैसे लगा रहे पता
जीन, शरीर के अंदरूनी कामकाज और वातावरण को ध्यान से जांचकर शोधकर्ता उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को गहराई से समझने की कोशिश कर रहे हैं। इससे भविष्य में उम्र से जुड़ी बीमारियों का इलाज करने और हर व्यक्ति के लिए खास देखभाल योजना बनाने में मदद मिलेगी। डॉ. प्रसून चटर्जी, जो नेशनल सेंटर फॉर एजिंग के अतिरिक्त चिकित्सा अधीक्षक और एम्स के बुजुर्गों के इलाज वाले विभाग में हैं, का कहना है कि इस शोध का लक्ष्य उम्र बढ़ने के लिए जिम्मेदार जैविक सूचक (Biomarker) की पहचान करना, शरीर की असल उम्र और जैविक उम्र में संबंध को समझना और बीमारियों और मृत्यु की संभावना का पता लगाने में इन सूचकों की भूमिका को खोजना है।
बुजुर्गों को तीन श्रेणियों में बांटा जाएगा
डॉक्टर चटर्जी ने आगे बताया कि अगला कदम बुजुर्गों को तीन श्रेणियों में बांटना होगा – स्वस्थ, कमजोर और बहुत कमजोर। इसके लिए शोधकर्ता उन जीन, शरीर के अंदरूनी कामकाज और वातावरण से जुड़े संकेतों (बायोमार्कर पैनल) का इस्तेमाल करेंग, फिर, कम से कम 10 साल तक इन समूहों पर नजर रखी जाएगी। इस दौरान देखा जाएगा कि उन्हें कितनी बार अस्पताल जाना पड़ा, उनकी दैनिक क्रियाकलापों में कितनी कमी आई और उनकी मृत्यु दर क्या रही. साथ ही, उनके शरीर की जैविक घड़ी (उम्र मापने का एक नया टेस्ट) को भी जांचा जाएगा।
डॉक्टर चटर्जी ने भविष्य के फायदों के बारे में बताते हुए कहा कि अभी तक, यह पता लगाने का कोई सटीक तरीका नहीं है कि बुजुर्गों को कितना लंबा जीवन बचा है, उन्हें कितनी बार अस्पताल जाना पड़ेगा या उनकी मृत्यु दर क्या होगी, लेकिन, इस अध्ययन में खोजे गए संकेतों का उपयोग कर के इस कमी को दूर किया जा सकता है।
36 महीने तक चलेगी स्टडी
इस परियोजना को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ICMR वित्त पोषित कर रहा है और यह 36 महीने तक चलेगी। डॉ राशि जैन, जो एम्स के बुजुर्गों के इलाज वाले विभाग में वैज्ञानिक हैं, उनकी टीम ऐसे परिवारों की तलाश कर रही है जिनमें हर उम्र के लोग हों, किशोर (10-19 साल), माता-पिता और अधेड़ (40-59 साल), दादा-दादी (60-79 साल) और परदादा-परदादी (80 साल से ऊपर)। उन्होंने बताया कि हर वर्ग से कम से कम 40 लोग शामिल होंगे।
अध्ययन में भाग लेने वालों के खून की जांच के साथ-साथ दिमाग, दैनिक क्रियाकलाप और खानपान से जुड़े टेस्ट भी किए जाएंगे। इससे उन्हें अपने वर्तमान और भविष्य के स्वास्थ्य की स्थिति को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी। डॉ राशि जैन ने आश्वासन दिया कि सभी प्रतिभागियों की जानकारी पूरी तरह गोपनीय रखी जाएगी और डेटा को कड़े नैतिक दिशानिर्देशों और नियमों के अनुसार संभाला जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि अगर कोई परिवार इस अध्ययन में शामिल होना चाहता है या एम्स दिल्ली द्वारा उम्र बढ़ने पर किए जा रहे शोध के बारे में और जानना चाहता है,