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पद्म श्री अवार्ड से 28 मई को सम्मानित होंगे स्वामी सदानंद महाराज

महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू देंगी पद्मश्री अवार्ड

भोपाल। महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू 28 मई को देश के ख्यातिलब्ध संत स्वामी सदानंद महाराज को पदमश्री पुरस्कार से सम्मानित करने जा रही है। इस खबर के बाद से निजानंद संप्रदाय में खुशी की लहर व्याप्त है। स्वामी सदानंद महाराज जी को यह अवार्ड उनके द्वारा सर्वसमाज के लिए किए जा रहे समाज सेवा के कार्य के लिए दिया जा रहा है। राष्ट्रपति भवन में आयोजित होने वाले भव्य समारोह में स्वामी जी को राष्ट्रपति जी के साथ राष्ट्रपति भवन के अशोक हाल में करेंगे। स्वामी जी को मिलने वाले सम्मान से निजानंद सम्प्रदाय के सुंदरसाथ में खुशी व गर्व का भाव देखा जा रहा है।

संत सदानंद महाराज जी का संक्षिप्त जीवन परिचय
संत शिरोमणि श्री 108 सदानन्दजी महाराज जी का जन्म हरियाणा, जिला के भिवानी के गाँव जुई में हुआ था। आप श्री गुरूजी परमहंस श्री श्री 108 राधिकादास जी से दीक्षित हुये और गुरूदेव श्री 108 मंगलदास से बैराग्य वेश धारण कर अब तक 1500 से अधिक श्रीमद् भागवत कथा कर आत्म जागृति संदेश दे चुके हैं। जनसेवा पोलियो जाँच शिविरों में 27147 नि:शुल्क पोलियों करेक्टिव सर्जरी कैलिपर वितरण का राष्ट्रीय कीर्तिमान प्राप्त कर चुके हैं। 23 गौ-शालाओं की स्थापना कर 26000 से अधिक गौ-माताओं की सेवा। 5450 निर्धन कन्याओं का विवाह। अनाथालय एवं वृद्धाश्रमों की स्थापना कर अनवरत संचालन व्यवस्था।

पर्यावरण के प्रति प्रेम होने के कारण पौधारोपण
पर्यावरण के प्रति प्रेम होने के कारण पौधारोपण, जल संरक्षण, नशा मुक्ति शिविर के साथ आदिवासी कल्याण केन्द्र की स्थापना कर चुके हैं। देश में आई विभिषिका से निपटने में प्रधानमंत्री राहत कोष में लाखों का अनुदान दे चुके हैं। सर्व रोग निदान केम्प शिविरों के साथ गुरूजी के संरक्षण में जन-सेवा और आत्म कल्याण हेतु सिलिगुड़ी, कालिम्पोंग, भिवानी, जुई, हरिद्वार, रामेश्वरम, वृंदावन, दिल्ली, कलकत्ता, मुक्तसर, पटना, वेगुसराय, विशाखा पट्टनम, हिसार, शिवानी, हॉसी, सुन्दरगढ (उड़ीसा), श्री पद्द्मावतीपुरी धाम पन्ना, रीवा, चित्रकूट तथा मध्य प्रदेश की राजधाधी भोपाल सहित लगभग 50 से अधिक स्थानों पर श्री कृष्ण प्रणामी मंदिर/सत्संग भवन, धर्मशाला, आश्रम, शैक्षणिक विद्यालयों की स्थापना एवं संचालन कर लाखों भक्तों के जीवन को जनसेवा के लिए प्रेरित कर आध्यात्म से जोड़ रहें हैं। स्वामी सदानंद प्रणामी चेरिटेबल ट्रस्ट, दिल्ली द्वारा भोपाल मंदिर निर्माण एवं कल्याणकारी कार्यों में भारी आर्थिक सहयोग दिया गया है।

जुई में हुआ जन्म
परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज का जन्म 1 अगस्त 1945 को हरियाणा के जिला भिवानी के गांव जुई में हुआ था। वह एक ब्राह्मण परिवार से थे। उनके पिता बृजलाल और माता शिव बाई हिंदू संस्कृति और परंपराओं के कट्टर अनुयायी थे। उन्होंने धीरे-धीरे धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों में रुचि लेना शुरू कर दिया, जिसके परिणाम स्वरूप उनके बहुमुखी चरित्र ने बहुत ही निर्णायक तरीके से आकार लिया। वह कम उम्र में ही बहुत गतिशील हो गए और उनमें अपार क्षमताएं प्रदर्शित हुई।

शिक्षक से सेना और सेना से वैराग्य
बचपन में ही गुरुदेव राधिकादास जी ने उनका अभिषेक और जागरण किया था। शिक्षा प्राप्त करके शिक्षक बनें। हालांकि नियति उन्हें कहीं और ले गई। राष्ट्र की सेवा करने की आंतरिक इच्छा ने उन्हें सेना में शामिल कर दिया। वहाँ वे अधिक धार्मिक हो गए और उनमें (वैराग्य) की भावना विकसित हुई।भारतीय सेना में आठ साल तक सेवा करने के बाद इस्तीफा देना पड़ा। 1972 में बसंत पंचमी के शुभ दिन पर गुरुदेव मंगलदास जी की उपस्थिति में, युवा भानु ने विकारों और सांसारिक सुखों को त्यागने की पवित्र शपथ ली और ब्रह्मचर्य को अपनाया-संत बनने की दिशा में पहला कदम। इसी दिन गुरुदेव मंगलदास जी ने भानु को सदानंद नाम दिया था।

सेवा में लगाया जीवन
गुरुदेव श्री मंगलदास जी के चुने हुए शिष्यों में से एक होने के नाते,स्वामी सदानंद जी ने अत्यंत विनम्रता, प्रेम, दयालुता और सादगी के साथ सभी मार्गों और कष्टों को शामिल करते हुए उदात्तता, वाक्पटुता और निस्वार्थ सेवा के साथ धार्मिकता का मार्ग अपनाया। उन्होंने तारतम सागर और श्रीमद्भागवत कथा का अध्ययन किया और गुरुजी मंगलदास जी द्वारा भागवत कथा का गायन बहुत गंभीरता से सुना।1979 में सिलीगुड़ी में तारतम वाणी का साप्ताहिक पारायण महायज्ञ बड़े पैमाने पर आयोजित किया गया था। यहीं पर सुंदरसाथ और संत मंडल के बीच सदानंद महाराज जी ने अपनी बहुआयामी विशेषताओं और ज्ञान को बड़े उत्साह और गतिशीलता के साथ प्रदर्शित किया था। उनकी भक्ति ने गुरुदेव मंगलदास जी को बहुत प्रभावित किया, जिससे अंतत: उन्हें भागवत कथा और तारतम वाणी पर चर्चा करने और प्रवचन शुरू करने का अधिकार और पवित्र आशीर्वाद मिला। तब से महाराज श्री सदानंद जी ने पिछले 52 वर्षों से विभिन्न धर्मों के माध्यम से अपने गुरुदेव के आशीर्वाद को वास्तविकता में अनुवादित किया है।

मानव जीवन का ये सार-तुम सेवा से पाओगे पार
गुरुदेव श्री मंगलदास जी व श्री राधिकादास जी के अशीर्वाद से स्वामी सदानंद जी ने सेवा कार्य को जीवन में सबसे ज्यादा महत्व दिया। उन्होंने आमजन को जागृति करते हुए मंत्र दिया कि मानव जीवन का ये सार—तुम सेवा से पाओगे पार। स्वामी सदानंद जी ने अब तक सैंकड़ों गौशालाएं, अनाथालयों, वृद्धाश्रमों, मानसिक रोगियों के लिए सदगुरु अपना घर, मंदिरों, अस्पतालों, सत्संग भवन, स्कूलों, कॉलेजों की स्थापना की। इसके अलावा पोलियों रोगियों के लिए जगह-जगह आप्रेशन कैंप लगाकर पोलियों से अपाहिज हुए लोगों को पुन: स्वास्थ जीवन प्रदान करने का कार्य लगातार चल रहा है।

निरंतर सेवा कार्य किए
गरीब कन्याओं के विवाह का कार्य, रक्तदान शिविर, नेत्र जांच व आप्रेशन शिविर, स्वास्थ शिविर, जैविक खेती जागरूकता, पौधारोपण, अन्नदान व भंड़ारे जैसे दर्जनों सेवा कार्य लगातार उनके द्वारा संचालित किए जा रहे हैं। कोरोना काल में गुरुदेव ने जगह-जगह भोजन व स्वास्थ्य सेवा की व्यवस्था करवाई और केंद्र व विभिन्न प्रदेश की सरकारों को आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाई।

देश के हर जिले में जागनी
स्वामी सदानंद जी महाराज ने देश के प्रत्येक जिले में जाकर प्रणामी धर्म की जागनी करते हुए लोगों को सेवा कार्य में जोड़ा। नेपाल में भी उन्होंने हिंदू धर्म का प्रचार-प्रसार करने के साथ-साथ सेवा कार्य में लोगों को लगाया। इसके चलते नेपाल व भारत में अनेक संस्थाओं से समय-समय पर उनको सम्मान मिलता रहा है।

नेपाल सरकार से मिला सर्वोच्च पुरस्कार
नेपाल का सर्वोच्च पुरस्कार वहां की सरकार द्वारा उनको दिया जा चुका हैं। संत समाज द्वारा उनको संत शिरोमणि व परमहंस जैसी अति सम्मानित उपाधि दी गई है। अब भारत की महामहिम राष्ट्रपति द्वारा उनको पद्मश्री द्वारा सम्मानित करना प्रणामी समुदाय के लिए अत्यंत गौरव की बात है।

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