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अग्नि के सात फेरे लिया बिना वैध नहीं आपकी शादी, सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कही ऐसी बात?

नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शादी को लेकर अहम फैसला सुनाया है. अपने इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाह एक संस्कार है और यह "सॉन्ग-डांस", "वाइनिंग-डायनिंग" का आयोजन नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि अपेक्षित सेरेमनी नहीं की गई है तो हिंदू विवाह अमान्य है और पंजीकरण इस तरह के विवाह को वैध नहीं बताता है. सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत हिंदू विवाह की कानूनी आवश्यकताओं और पवित्रता को स्पष्ट किया है.

अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि हिंदू विवाह को वैध होने के लिए, इसे सप्तपदी (पवित्र अग्नि के चारों ओर फेरे के सात चरण) जैसे उचित संस्कार और समारोहों के साथ किया जाना चाहिए और विवादों के मामले में इन समारोह का प्रमाण भी मिलता है. जस्टिस बी. नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा, हिंदू विवाह एक संस्कार है, जिसे भारतीय समाज में एक महान मूल्य की संस्था के रूप में दर्जा दिया जाना चाहिए. इस वजह से हम युवा पुरुषों और महिलाओं से आग्रह करते हैं कि वो विवाह की संस्था में प्रवेश करने से पहले इसके बारे में गहराई से सोचें और भारतीय समाज में उक्त संस्था कितनी पवित्र है, इस पर विचार करें.

उन्होंने कहा, विवाह 'गीत और नृत्य' और 'शराब पीने और खाने' का आयोजन नहीं है या अनुचित दबाव द्वारा दहेज और उपहारों की मांग करने और आदान-प्रदान करने का अवसर नहीं है. जिसके बाद किसी मामले में आपराधिक कार्यवाही की शुरुआत हो सकती है. विवाह कोई व्यावसायिक लेन-देन नहीं है, यह भारतीय समाज का ऐसा महत्वपूर्ण आयोजन है जो एक पुरुष और एक महिला के बीच संबंध स्थापित करने के लिए मनाया जाता है, जो भविष्य में एक विकसित होते परिवार के लिए पति और पत्नी का दर्जा प्राप्त करते हैं.

संविधान के अनुच्छेद 142 (किसी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की पूर्ण शक्तियाँ) के तहत एक स्थानांतरण याचिका को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने ये टिप्पणियाँ की हैं। कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार विवाह को वैध नहीं मानते हुए विवादित पक्षों के खिलाफ तलाक, भरण-पोषण और आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया । मामले में वादी और प्रतिवादी (जोड़े) ने हिंदू रीति-रिवाजों के मुताबिक शादी नहीं की थी, बल्कि उस दंपत्ति ने हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 8 के तहत सिर्फ अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन ही कराया था।

उस जोड़े ने वैदिक जनकल्याण समिति नामक एक संगठन से अपने विवाह का प्रमाण पत्र हासिल किया था। इसी प्रमाण पत्र के आधार पर, दंपत्ति ने उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण नियम, 2017 के तहत "विवाह पंजीकरण का प्रमाण पत्र" भी हासिल कर लिया था। 

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वैध हिन्दू विवाह नहीं होने की स्थिति में कोई भी विवाह पंजीकरण अधिकारी हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 8 के प्रावधानों के तहत ऐसे विवाहों का पंजीकरण नहीं कर सकते। खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि अधिनियम की धारा 8 के तहत विवाह का पंजीकरण केवल इस बात की पुष्टि करने के लिए है कि पक्षकारों ने अधिनियम की धारा 7 के अनुसार वैध विवाह समारोह में भाग लिया है।

इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत आवश्यक वैध समारोहों के बिना भारतीय विवाहों के पंजीकरण की प्रवृत्ति पर सख्त आपत्ति जताई है। कोर्ट ने अपने विस्तृत फैसले में विवाह के महत्व पर भी गहनता से प्रकाश डाला है। अदालत ने कहा कि भारतीय समाज में विवाह एक संस्था के रूप में बहुत महत्व रखता है। इसलिए, दम्पतियों को सिर्फ कागजी पंजीकरण के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए।

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