दिव्यांग के अधिकारों के लिए कानून लागू होने में हो रही देरी के लिए राज्य सरकारों को कड़ी फटकार लगाई : सीजेआई
नई दिल्ली
देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने दिव्यांग लोगों के अधिकारों के लिए बनाए गए कानून को देशभर में लागू करने में हो रही देरी पर निराशा जताई है और उन राज्य सरकारों को कड़ी फटकार लगाई है, जहां अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस बात पर अफसोस जताया कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPWD Act) का कार्यान्वयन कानून लागू होने के पांच साल से अधिक समय बीत जाने के बावजूद पूरे भारत में निराशाजनक बना हुआ है।
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने एक जनहित मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि दिव्यांगों के अधिकारों से संबंधित एक्ट बने हुए पांच साल हो गए लेकिन अभी तक कई राज्य सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी है। CJI ने इस बात पर घोर निराशा जताई कि कई राज्यों ने अभी तक कमिश्नर भी नियुक्त नहीं किए हैं।
बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, कई राज्यों ने अधिनियम के तहत नियम भी नहीं बनाए हैं, जिसे 6 महीने के भीतर पूरा कर लिया जाना था। इसके साथ ही सीजेआई ने कहा कि जिन राज्यों ने विकलांगों के अधिकारों से संबंधित मामलों की देखरेख करने के लिए नि:शक्तता आयुक्त नियुक्त नहीं किए हैं, वे तुरंत ऐसा करेंगे।
राज्यों की मौजूदा स्थिति को रेखांकित करते हुए CJI चंद्रचूड़ ने कहा, "आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब, उत्तर प्रदेश और केंद्रशासित प्रदेश अंडमान और निकोबार ने अभी तक नि:शक्तता आयुक्तों की नियुक्ति नहीं की है।" उन्होंने आगे कहा, "गुजरात, हिमाचल प्रदेश, केरल, मिजोरम, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, और केंद्र शासित प्रदेशों दमन दीव, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख ने अभी तक इस एक्ट की धारा 88 के तहत अलग से फंड आवंटन भी नहीं किया है।"
CJI ने टिप्पणी की कि अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल में दिव्यांगों से जुड़े मामलों की त्वरित सुनवाई करने के लिए न तो विशेष अदालतें बनाई जा सकी हैं और न ही लोक अभियोजक तैनात किए गए हैं। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ और केंद्रशासित प्रदेश दमन दीव में अदालत तो है लेकिन लोक अभियोजक नहीं हैं, जबकि छत्तीसगढ़ में मूल्यांकन बोर्ड का गठन नहीं किया जा सका है।
सीजेआई ने कहा कि जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पास उच्च सुविधा प्रदान करने के लिए मूल्यांकन बोर्ड भी नहीं हैं। कोर्ट ने पिछले साल इस मामले में केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय से जवाब मांगा था।