ना चुनाव और ना मनोनयन, फिर कैसे होता है सरसंघचालक पर फैसला, सर्वसम्मति से सरसंघचालक की जिम्मेदारी दी जाती है
नई दिल्ली
दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के करीब 100 वर्ष पूरे होने वाले हैं। 1925 में विजयदशमी के मौके पर डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने इसकी स्थापना की थी और वह इसके प्रथम सरसंघचालक भी थे। आरएसएस की शब्दावली में उन्हें आद्य सरसंघचालक कहा जाता है। हर वर्ष चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन हिंदू कैलेंडर के अनुसार उनकी जयंती भी मनाई जाती है। इस अवसर पर अकसर शाखाओं में आरएसएस आयोजन करता है और स्वयंसेवकों को उनके जीवन एवं स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान के बारे में बताया जाता है।
आज नवरात्रि के पहले दिन पीएम नरेंद्र मोदी, अमित शाह समेत तमाम हस्तियों ने आरएसएस के पहले सरसंघचालक को श्रद्धांजलि अर्पित की है, जिन्हें संघ में डॉ. साहब के उपनाम से भी ख्याति प्राप्त रही है। पेशे से डॉक्टर रहे केशव बलिराम हेडगेवार स्वतंत्रता आंदोलन में भी शामिल रहे थे और एक समय में कांग्रेस के मध्य प्रांत के अध्यक्ष रहे थे। 1889 में जन्मे डॉ. हेडगेवार की आयु बहुत लंबी नहीं थी और 1940 में उनका निधन हो गया था। लेकिन 51 सालों के संक्षिप्त जीवन में ही उन्होंने हिंदू राष्ट्र की सांस्कृति एकता के लिए जो प्रयास किए थे, वह आज भी मायने रखते हैं।
यही नहीं आज भाजपा और संघ परिवार के रूप में एक वैचारिक वट वृक्ष लगभर हर क्षेत्र में खड़ा हुआ, वह उनके ही रोपे एक पौधे का परिणाम है। वर्तमान में आरएसएस के सरसंघचालक के तौर पर मोहन भागवत को दायित्व दिया गया है, जो संघ के छठे सरसंघचालक हैं। आरएसएस में सरसंघचालक का पद शीर्ष होता है, हालांकि कामकाज की जिम्मेदारी सरकार्यवाह को होती है, जिसे हम सरल भाषा में संघ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के तौर पर भी समझ सकते हैं। सरसंघचालक के चुनाव की प्रक्रिया भी बेहद रोचक है और यह किसी आम संगठन में वोटिंग या फिर मनोनीत करने जैसी नहीं होती।
ना चुनाव और ना मनोनयन, फिर कैसे होता है सरसंघचालक पर फैसला
आरएसएस से जुड़े एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि आरएसएस के सरसंघचालक का ना चुनाव होता है और ना ही मनोनयन किया जाता है। उन्हें सर्वसम्मति से सरसंघचालक की जिम्मेदारी दी जाती है। प्रथम सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार अपने निधन से पूर्व माधवराव सदाशिव गोलवार यानी गुरुजी को यह जिम्मा सौंप गए थे। इसके बाद उन्होंने भी बालासाहेब देवरस के लिए एक पर्ची लिख गए थे, जिसमें उन्होंने सर्वसम्मति से उन्हें जिम्मा देने की बात कही थी। उन्होंने कहा था, 'मैंने कई लोगों से बात करने के बाद तय किया कि देवरस को अगला सरसंघचालक होना चाहिए।'
जब मोहन भागवत को जिम्मेदारी देने का अचानक हुआ था ऐलान
आमतौर पर आरएसएस के नए सरसंघचालक को जिम्मेदारी तभी मिलती है, जब पहले से पद पर बैठे सरसंघचालक दिवंगत हो गए हों। हालांकि इस मामले में एक अपवाद मोहन भागवत का है, उन्हें पूर्व सरसंघचालक केसी सुदर्शन के रहते हुए ही जिम्मेदारी मिली थी। इस संबंध में भी रोचक प्रकरण है। आरएसएस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक चल रही थी। वृत्त प्रस्तुत करने के लिए सरकार्यवाह मोहन भागवत मंच पर आने वाले थे। इसी बीच केसी सुदर्शन ने माइक अपने हाथ में लिया और उन्हें अगला सरसंघचालक नियुक्त किए जाने की घोषणा की।' उन्होंने बताया था कि संगठन के तमाम वरिष्ठ अधिकारियों एवं क्षेत्र कार्यवाह समेत कई लोगों से मंथन के बाद मोहन भागवत को जिम्मेदारी देने का फैसला सर्वसम्मति से लिया गया है।