उत्तर प्रदेश

पल्लवी पटेल की पार्टी ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन से हाथ मिला लिया

लखनऊ
अखिलेश यादव ने पिछले दिनों यह ऐलान किया था कि अपना दल (कमेरावादी) के साथ समाजवादी पार्टी (सपा) का अब कोई गठबंधन नहीं है. इसके कुछ ही दिन हुए हैं और अब पल्लवी पटेल की पार्टी ने नए मोर्चे का ऐलान कर दिया है. पल्लवी पटेल की पार्टी ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) से हाथ मिला लिया है.

इस नए मोर्चे में बाबूराम पाल की राष्ट्रीय उदय पार्टी, प्रेमचंद बिंद की प्रगतिशील मानव समाज पार्टी भी शामिल है. इसे नाम दिया गया है पीडीएम न्याय मोर्चा यानि पिछड़ा दलित मुस्लिम न्याय मोर्चा. सवाल उठ रहे हैं कि यह नया मोर्चा लोकसभा चुनाव में किसका खेल बिगाड़ेगा?

नए मोर्चे का नाम और ऐलान के मौके पर कही गई बात, दोनों पर गौर करें तो निशाने पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से ज्यादा सपा लग रही है. अखिलेश पिछले कुछ समय से पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) की बात करते आए हैं. पीडीए को ही आधार बनाकर राज्यसभा चुनाव के समय तेवर दिखाते हुए पल्लवी ने दो टूक कह दिया था कि किसी बच्चन-रंजन को वोट नहीं दूंगी. अब पल्लवी के नेतृत्व में बने इस मोर्चे का नाम ही पीडीएम रख दिया गया है जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि फोकस किस मतदाता वर्ग पर रहने वाला है.

पल्लवी ने कहा भी कि पीडीए के ए में बड़ी कन्फ्यूजन है. कहीं ये अल्पसंख्यक रहता है तो कहीं अगड़ा, कहीं आदिवासी बन जाता है. पल्लवी और ओवैसी की रणनीति पिछड़ा और मुस्लिम वोटों का नया समीकरण गढ़ने की है. अगर यह रणनीति तनिक भी सफल होती है तो रामपुर, मुरादाबाद, आजमगढ़ जैसी कई ऐसी सीटों पर सपा का खेल बिगाड़ सकती है जहां ओबीसी और मुस्लिम मतदाता ही जीत-हार का निर्धारण करते हैं.

ओवैसी की पार्टी मुस्लिम पॉलिटिक्स की पिच पर महाराष्ट्र से बिहार तक दम दिखा चुकी है लेकिन यूपी यह वोटर अधिकतर सपा के साथ ही रहा है. ओवैसी ने खुद कहा भी कि 2022 के यूपी चुनाव में 90 फीसदी मुस्लिम वोटर्स ने सपा को वोट किया था. सपा मुस्लिमों के साथ क्या कर रही है, यह सबने देखा है. मुरादाबाद में एसटी हसन के साथ क्या हुआ, किसी से छिपा नहीं है.

अब असदुद्दीन ओवैसी अगर मुस्लिमों के साथ सपा के व्यवहार का जिक्र कर रहे हैं, एसटी हसन की बात कर रहे हैं तो इसके पीछे भी सियासी रणनीति है. आजम खान, इरफान सोलंकी के खिलाफ कानूनी कार्रवाइयों को लेकर मुस्लिम वर्ग में सपा से नाराजगी की बातें होती रही हैं. कहा जाता है कि मुस्लिमों को सपा से नाराजगी की वजह यह है कि इन कार्रवाइयों का सपा जिस तरह का विरोध कर सकती थी, वैसा नहीं किया. अब ओवैसी और पल्लवी की कोशिश मुस्लिमों की नाराजगी को हवा देकर उसे वोट में कैश कराने की है.

क्या कहते हैं जानकार

राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि यूपी में बीजेपी का वोट इंटैक्ट है. इस मोर्चे के आने से एंटी इनकम्बेंसी के वोट बंटेंगे और जिसका नुकसान विपक्ष को होगा. नीतीश कुमार एक सीट पर एक उम्मीदवार के जिस फॉर्मूले की बात कर रहे थे, उसका आधार यही था कि सत्ता विरोधी वोट एकमुश्त पड़ें. इनमें बंटवारा न हो. यूपी में पहले ही बसपा अलग चुनाव लड़ रही है, अब नए मोर्चे के आने से भी विपक्ष का गणित ही गड़बड़ होगा. इस मोर्चे के उम्मीदवार चुनाव जीतें या नहीं लेकिन सपा-कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवारों की संभावनाओं को नुकसान जरूर पहुंचा सकते हैं.

पल्लवी की पार्टी का बेस वोटर कुर्मी हैं लेकिन 2014 और इसके बाद हुए चुनावों के नतीजे देखें तो इस समाज पर अपना दल (कमेरावादी) या कृष्णा पटेल के मुकाबले अपना दल (सोनेलाल) और अनुप्रिया पटेल की पकड़ अधिक मजबूत नजर आती है. अनुप्रिया केंद्र सरकार में मंत्री हैं, अपनी पार्टी से दो बार की सांसद हैं. बीजेपी में भी स्वतंत्र देव सिंह जैसे मजबूत नेता हैं जिनकी अपने समाज में मजबूत पैठ रखते हैं. सर्वे रिपोर्ट्स के मुताबिक बीजेपी और अपना दल (सोनेलाल) के गठबंधन को 2022 के यूपी चुनाव में कुर्मी बिरादरी के करीब 90 फीसदी वोट मिले थे. ऐसे में अगर पल्लवी अपने समाज के एक छोटे वोटर वर्ग को भी तोड़ पाती हैं तो ये बीजेपी के लिए झटका होगा.

यूपी में कितने कुर्मी-मुस्लिम

अनुमानों के मुताबिक यूपी की कुल आबादी में कुर्मी समाज की भागीदारी 12 फीसदी के करीब है. मुस्लिम भी करीब 20 फीसदी हैं. पूर्वांचल की मिर्जापुर, वाराणसी जैसी लोकसभा सीटों पर कुर्मी समाज प्रभावशाली तादाद में है तो दर्जनभर से अधिक सीटों पर मुस्लिम. वोटिंग पैटर्न की बात करें तो कुर्मी जहां बीजेपी को अधिक वोट करते रहे हैं तो वहीं मुस्लिम समाज ज्यादातर सपा के साथ रहा है. अब नया मोर्चा यूपी की सियासत में किस कदर नया विकल्प बन पाता है, ये देखने वाली बात होगी.

 

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