चिराग पासवान की मां देवर पारस से लड़ेंगी या भतीजे प्रिंस से
पटना.
बिहार की 40 लोकसभा सीटों को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने क्या बांटा, दिवंगत राम विलास पासवान के कुनबे में भीषण संकट उभर आया। दिवंगत राम विलास पासवान की जगह केंद्र में मंत्रीपद पाने वाले उनके भाई पशुपति कुमार पारस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दूरी बना ली। मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। अब वह पटना पहुंच रहे हैं। शाम साढ़े छह बजे पटना एयरपोर्ट से निकलकर वह वहीं पास में अपने कार्यालय जाकर मीडिया से बात करेंगे या सीधे राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से मिलने जाएंगे-
यह देखना होगा। देखना यह भी होगा कि उनके साथ प्रिंस पासवान जाते हैं या नहीं। अगर गए तो बिहार में इस बार चाचा-भतीजा, भाभी-देवर या चाची-भतीजा जैसी लड़ाई लोकसभा चुनाव के दौरान दिख जाएगी, वह भी दिवंगत रामविलास पासवान के कुनबे के अंदर, यानी आपस में। दिवंगत राम विलास पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना की थी। पहली पत्नी तो गांव में ही रहीं। दूसरी पत्नी रीना पासवान हमेशा साथ। फिर भी उन्होंने कभी पत्नी को राजनीति में नहीं लाया। भाइयों रामचंद्र पासवान और पशुपति कुमार पारस को आगे बढ़ाया। बेटे चिराग पासवान बड़े हुए तो उन्हें भी आगे लाया और फिर रामचंद्र पासवान के दिवंगत होने के बाद उनके बेटे प्रिंस राज पासवान। पिता की सीट पर प्रिंस सांसद बने तो उन्होंने अपने बड़े पापा राम विलास पासवान की बात दुहराई और सोशल मीडिया पर चिराग पासवान के साथ तस्वीर शेयर करते हुए लिखा कि बड़ा भाई पिता के समान होता है। लेकिन, फिर बहुत कुछ बदल गया। दिवंगत राम विलास पासवान की विरासत की लड़ाई में भाई पशुपति कुमार पारस तब भारी पड़े, जब भारतीय जनता पार्टी ने मंत्री की जिम्मेदारी चाचा को सौंप दी। पारस का समय ठीक चलता रहा और उनके साथ लोक जनशक्ति पार्टी के चार सांसद नजर आते रहे। सिर्फ चिराग पासवान अकेले रह गए। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी को नुकसान दिलाने के कारण मजबूरी मे ंभाजपा ने उन्हें अपने साथ नहीं लिया। जब नीतीश एनडीए से बाहर हो गए, तब धीरे-धीरे चिराग की वापसी हुई। अब चिराग की ऐसी वापसी हुई कि भाजपा ने पशुपति पारस को किनारे छोड़ रामविलास पासवान के बेटे को पांच सीटें दे दीं।
पारस महागठबंधन में जा रहे, साथ कौन… सवाल यही
जब प्रिंस राज सांसद बने, तब उन्होंने बड़े भाई चिराग पासवान के लिए जो लिखा था वह चाचा पशुपति कुमार पारस के साथ रहने में भूल गए। अब पशुपति कुमार पारस के दिन बदल गए हैं। उन्होंने मंगलवार को मंत्री पद छोड़ा और अब महागठबंधन से समझौता करने की तैयारी में हैं। भाजपा और चिराग खुद भी चाहते हैं कि घर की बात घर में रह जाए। घर टूटने का फायदा कोई और नहीं लूटे। लेकिन, ऐसा होना या नहीं होना पारस के फैसले पर निर्भर करता है। यह भी कुछ घंटे में साफ हो जाएगा। अगर पारस महागठबंधन में चले जाते हैं तो हाजीपुर से लड़ेंगे, यह तय है। अगर उनके साथ प्रिंस चले गए, तो पासवान कुनबे में भारी उठापटक होगा। ऐसी स्थिति में पारस का सामना हाजीपुर में दिवंगत राम विलास पासवान की पत्नी रीना पासवान से भी हो सकता है। मतलब, चिराग जमुई में भी टिके रहते हुए पिता की सीट मां को लड़ने के लिए दे दें। एक और लड़ाई प्रिंस से संभावित है, अगर वह पारस के साथ कायम रह गए तो। चिराग हाजीपुर में रह गए तो रीना पासवान समस्तीपुर से उतर सकती हैं। यहां से प्रिंस पासवान अभी भी सांसद हैं और आगे भी रहना चाहेंगे। अगर प्रिंस चिराग की तरफ आ गए तो समस्तीपुर उनके पास चला जाएगा। हाजीपुर में रीना पासवान और जमुई में चिराग पासवान उतरेंगे।