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भारत के पहले लोकसभा चुनावों में हुई निष्पक्षता ने दुनिया भर में हलचल मचा दी थी, इलेक्शन कमीशन का 71 साल पुराना किस्सा

ब्रिटेन
ब्रिटिश हूकूमत से आजादी मिलने के बाद भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी स्वतंत्र रूप से पहला लोकसभा चुनाव कराना। 1951-52 में देश के भीतर पहले चुनाव हुए। भारत के पहले लोकसभा चुनावों में हुई निष्पक्षता ने दुनिया भर में हलचल मचा दी थी। सबसे ज्यादा ध्यान खींचा अफ्रीकी देश सूडान पर। यही वजह रही कि सूडान ने अपने पहले संसदीय चुनाव के लिए भारतीय चुनाव आयोग के तत्कालीन टॉप अधिकारी सुकुमार सेन को अपने देश आमंत्रित किया। सेन की निगरानी में सूडान के भीतर 1953 में पहला संसदीय चुनाव हुआ।

भारतीय चुनाव आयोग के अभिलेखीय रिकॉर्ड के अनुसार, सेन ने सूडान में चुनाव आयोजित करने और अफ्रीकी-अरबी राष्ट्र की जरूरतों के अनुरूप संशोधन करने में 14 महीने बिताए। ईसीआई के अभिलेखीय साहित्य के अनुसार, पहले आम चुनावों (1951-52) की सफलता ने भारत को लोकतंत्र की "ठोस जमीन" पर दुनिया के सामने मजबूती से खड़ा कर दिया था।

अमेरिका, मध्यपूर्व और अफ्रीकी देशों ने टिप्स लिए
रिकॉर्ड कहते हैं, "चुनावों पर विस्तृत जानकारी के लिए मध्य पूर्व, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देशों ने भी भारतीय चुनाव आयोग के टिप्स लिए। मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को पूर्व ब्रिटिश उपनिवेश सूडान में चुनाव कराने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय आयोग की अध्यक्षता के लिए नामित किया गया था। उन्होंने अफ्रीकी-अरबी राष्ट्र की आवश्यकता के अनुरूप कानूनों और प्रक्रियाओं को आंशिक रूप से संशोधित करते हुए चुनाव आयोजित करने में 14 महीने बिताए। इसका नतीजा यह रहा कि महज 2 प्रतिशत साक्षरता दर के बावजूद सूडान में संसदीय चुनाव पूरी तरह से सफल रहे।

1954 में, जब भारत सरकार ने नागरिक पुरस्कारों की स्थापना की, तो सेन को उनके योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी सेन, पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव थे जब उन्हें भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया था। सुकुमार सेन की भूमिका को 17वें मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने भी अपनी पुस्तक "एन अनडॉक्यूमेंटेड वंडर: द ग्रेट इंडियन इलेक्शन" में उल्लेख किया है।

क़ुरैशी ने अपनी पुस्तक में लिखा है, "आज, सात दशकों से अधिक समय के बाद महान भारतीय चुनाव स्वतंत्र, निष्पक्ष और विश्वसनीय चुनावों के लिए एक वैश्विक मानक बन गया है। हालांकि इस अवधि के दौरान कई चुनाव सुधार हुए हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख मतपत्र से बदलाव है। बैलेट पेपर से अब इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें आ गई हैं। फिर भी 80 प्रतिशत प्रणाली वही है जो इसके संस्थापक सेन ने बनाई थी।''

रिकॉर्ड के अनुसार, "लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को तब और अधिक अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिला जब लोकसभा अध्यक्ष जीवी मावलंकर को 1956 में जमैका में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की सामान्य परिषद के अध्यक्ष के रूप में चुना गया। यह पहली बार था कि एक एशियाई सदस्य को अध्यक्ष के लिए चुना गया था।''

भारत अब अपनी 18वीं लोकसभा के चुनाव के लिए अगले आम चुनाव की तैयारी कर रहा है, जिसके कार्यक्रम की घोषणा अगले महीने होने की संभावना है। देश में आखिरी आम चुनाव 2019 में हुए थे।

 

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