मध्यप्रदेश

प्रदेश के 10 हजार पुनीत वन को संवारेगा ईको पर्यटन बोर्ड

भोपाल

पर्यावरण और जैव विविधिता को संवारने के लिए वन विभाग लाखों रूपये खर्च करने के बाद जहां वन और जैव विविधता को उतनी सहजता से नहीं बचा पाता है। जितनी सहजता से भील समुदाय के लोग अपने पुनीत वन को सैकड़ों साल से  बचाए हुए हैं। भील समुदाय के लिए पुनीत वन ऐसा वन होता है जहां इनकी लोकसंस्कृति जुड़ी रहती है।

पुनीत वन की सबसे खास बात यह है कि ऐसे जंगलों से भील समुदाय के लोग न तो इस जंगल से लकड़ी लेते हैं और न ही किसी जानवर का शिकार करते हैं। इसके पीछे उनकी मान्यता यह है कि अगर समाज ऐसा करेगा तो वन में रहने वाला देवता उनसे खासा नाराज हो जाएगा और अंत में उसके क्रोध का शिकार समाज के लोगों को उठाना होगा। भील समुदाय की आस्था और अनूठी संस्कृति को देखते हुए ईको पर्यटन विकास बोर्ड ने ऐसे पुनीत वन को संवारने का फैसला लिया है। बोर्ड की मुख्य कार्यपालन अधिकारी समिता राजौरा ने बताया कि प्रदेश में बोर्ड ने ऐसे करीब 10 हजार वनों को चिन्हित किया है।

झाबुआ में सबसे ज्यादा पुनीत वन
झाबुआ जिले में सबसे ज्यादा 800 पुनीत वन है। पुनीत वन में रहने वाले आदिवासी समाज के देवताओं को भील समुदाय के लोग अपने सुख और दुख दोनों में याद करते हैं। उनकी ऐसी मान्यता है कि ऐसा नहीं करने पर वनों में रहने वाले उनसे खासा नाराज हो जाएंगे।

जैव विविधिता बची हुई है
पुनीत वन के जरिए जहां पर्यावरण बचा हुआ है, वहीं ऐसे वनों में जैव विविधता भी बची हुई है। अगर इन वनों को शासन बचाने में सफल रहता है तो निश्चित ही आने वाले समय में प्रदेश में जैव विविधता बची रहेगी। इन वनों की सबसे खास बात यह है कि यहां रहने वाले जानवर या पशु- पक्षी को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाता है।

अलीराजपुर, धार और झाबुआ से होगी शुरुआत
समिता राजौरा ने बताया कि पुनीत वन को संवारने को लेकर बोर्ड ने एक प्रस्ताव बनाकर शासन को भेज दिया है। शासन से इसके लिए मंजूरी मिल गई है। इसकी शुरूवात वन मंत्री नागर सिंह चौहान के गृह जिले अलीराजपुर, धार और झाबुआ से होगी। ऐसे वनों को संवारने के लिए भील समुदाय से जुड़े लोगों से बोर्ड ने चर्चा भी कर ली है। भील समुदाय के लोग अपने देवता को गर्भ गृह में रखने की बजाए खुले स्थान में रखना पसंद करते है। बोर्ड ऐसे स्थानो पर चबुतरा और बाउंड्री कराने का निर्णय लिया है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button