छत्तीसगड़

भगवान को यदि कुछ अर्पण करना ही है तो अपना मन अर्पण करो

रायपुर

दुख या विपत्ति में या तो गुरु याद आते हैं या भगवान, इसलिए कहा गया है कि सुख व संपत्ति के होते हुए भी भगवान को याद रखोगे तो दुख आकर भी चले जायेगी। भक्ति के बदले यदि सुख मांग लिया तो भक्ति कहां रह जायेगी। यदि मांगना ही है तो श्रीकृष्ण से केवल यही मांगो कि तुम हमारे हो जाओ-हम तुम्हारे हो जाएं। पीतांबरधारी श्रीकृष्ण कहते हैं जब कोई आता है तो उनका पीतांबर ही ले जाता है,वे तो वहीं रह जाते हैं। दुनिया के लोग आज सोने (स्वर्ण) के पीछे दौड़ रहे हैं, उन्हे सत्संग, भक्ति या भगवान से क्या वास्ता? भगवान को यदि कुछ अर्पण करना ही है तो अपना मन अर्पण करो।

हिंद स्पोर्टिंग मैदान लाखेनगर में श्रीमद्भागवत कथा प्रसंग के बीच संत राजीवनयन महाराज ने बताया कि भगवान के सामने जाकर आज दुख कौन मांगता है लेकिन कुंती ऐसी पहली महिला थी जिसने दुख मांगा। लेकिन शास्त्र कहता है कि देने वाला अपने आप देता हैं, भक्ति के बदले में कुछ मांगना नहीं। भागवत कथा प्रसंग में कुंती, द्रौपदी, उत्तरा के नारी चरित्र का वर्णन सुनाते हुए कहा कि नारी आज की हो या महाभारत काल की करुणा की सागर है नारी। सारे कष्ट सहकर भी अपने परिवार की सलामती चाहती है लेकिन वही परिवार एक महिला का ध्यान नहीं रख पाती है। पुत्र, पुत्री, पति, सास-ससुर की चिंता करती हैं,उनकी खुशी का खयाल रखती हैं।

24 घंटे व 365 दिन यदि काम कर सकती है तो वह है नारी। इसलिए नारी का आदर-सम्मान करें। मन शुद्ध होता है उसकी बुद्धि शुद्ध होती है। जिसकी बुद्धि शुद्ध होगी उसी का मन सत्संग में लगेगा। सत्संग तो टीवी में भी देख व सुन सकते हैं पर मन में अंदर जाता कितना है यह यक्ष सवाल है। घर की महिलाएं जब परिवार के लोगों को सत्संग में चलने कहते हैं तो ऐेसे ही कुछ लोग टीवी का उदाहरण रख देते हैं। वैसे तो खाना के तमाम वेरायटी टीवी पर आते हैं,टीवी देखकर उसे खा क्यों नहीं लेते?

पितामह ने राज धर्म के दिए संदेश-
महाभारत के युद्ध में दर्दनांक मंजर देखकर दुखी युधिष्ठिर रोने लगते हैं तब द्वारिकाधीश उन्हे मृत्युशैया पर लेटे भीष्म पितामह के पास ले जाते हैं। पितामह राजधर्म के चार उपदेश उन्हे देते हैं एक-राजा को दान धर्म का पालन करना चाहिए। दूसरा-प्रजा को पुत्रवत स्नेह देना, तीसरा-मोक्षधर्म राजा का धर्म होता है मोक्ष का विचार भी होना चाहिए। हमेशा सत्ता से बने रहना ही नहीं है राजधर्म। चौथा-स्त्री धर्म,राजा का परम कर्तव्य है कि उनके राज्य में स्त्री का अपमान न हो। उसकी रक्षा करना है,यदि रक्षा नहीं कर सकते हैं तो आंख बंद कर राजकाज छोड़ दें। अपराधी को दंडित करें।

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