स्वस्थ-जगत

स्वास्थ्य की निगरानी के लिए 5 महत्वपूर्ण टेस्ट

कई बार ऐसा होता है कि शरीर में कोई बीमारी हो गई होती है और इसके लक्षण भी नजर आ रहे होते हैं, लेकिन बीमारी क्या है, यह पता नहीं लग पाता है। ऐसा अधिकतर खून से जुड़ी बीमारी में होता है। जिसका सही समय पर पता लगना बहुत जरूरी है। ब्लड लिविंग टिशू होते हैं, जो लिक्विड और सॉलिड से बने होते हैं।

ब्लड डिसऑर्डर का डायग्नोज करने के लिए फिजिकल एग्जामिनेशन की जरूरत होती है। सह लेबोरेटरी टेस्ट के बाद बीमारी का कारण पता चल जाता है। कभी-कभी कुछ मरीजों में ब्लड डिसऑर्डर के कुछ खास लक्षण नजर नहीं आते हैं। कई बीमारियों के खतरे से बचने के लिए रेगुलर चेकअप की तरह कुछ ब्लड टेस्ट भी करवाए जाते हैं, जिनके बारे में जानकारी होना जरूरी है।'

ब्लड डिसऑर्डर के कारण होने वाली दिक्कतें

अगर आप ब्लड डिसऑर्डर के शिकार हैं, तो इसके कारण आपको कई तकलीफों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे कि एनीमिया, थैलेसीमिया, हीमोफीलिया, प्लेटलेट्स डिसऑर्डर, वाइट ब्लड सेल्स डिसऑर्डर और अन्य डिसऑर्डर की समस्या आदि। थैलेसीमिया एक गंभीर जन्मजात ब्लड डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर में हीमोग्लोबिन की सही मात्रा नहीं होती है।ब्लड डिसऑर्डर में एनीमिया सबसे आम है। एनीमिया ब्लड डिसऑर्डर का एक प्रकार है और इसमें खून की कमी हो जाती है।

ब्लड डिजीज की जांच के लिए किए जाते हैं ये टेस्ट्सखून में किसी प्रकार की गड़बड़ी होने का बुरा प्रभाव पूरे स्वास्थ्य पर पड़ता है।इसलिए ब्लड डिजीज का पता लगाने के लिए कुछ टेस्ट जरूरी होते हैं।

ब्लड डिसऑर्डर का ट्रीटमेंट

ब्लड डिसऑर्डर का उपचार बीमारी के प्रकार पर निर्भर करता है। सिंपल ऑब्जर्वेशन के बाद डॉक्टर दवाओं और अन्य इम्यून मॉडुलेटिंग थेरेपी की सलाह दे सकते है। ब्लड की बीमारी में एनीमिया सबसे आम बीमारी है। इसके पीड़ित व्यक्ति के ट्रीटमेंट के लिए रेड ब्लड सेल ट्रांसफ्यूजन की जरूरत होती है।

कम्प्लीट ब्लड काउंट

कम्प्लीट ब्लड काउंट की जांच के लिए सेल्युलर कंपोनेंट की जांच की जाती है। इस टेस्ट के माध्यम से रेड ब्लड सेल्स, व्हाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स को चेक किया जाता है।

ब्लड स्मीयर

ब्लड स्मीयर टेस्ट के माध्यम से ब्लड सेल्स के शेप और साइज को चेक किया जाता है। इस टेस्ट में माइक्रोस्कोप की सहायता से ब्लड स्मीयर टेस्ट किया जाता है। इस टेस्ट में प्रत्येक ब्लड सेल्स के बारे में जानकारी हासिल होती है।

क्लॉटिंग टेस्ट

प्लेटलेट्स फंक्शन के बारे में पता लगाने के लिए क्लॉटिंग टेस्ट किया जाता है। इस टेस्ट में क्लॉटिंग फैक्टर के बारे में जांच की जाती है।इसमें प्रोटीन की जांच के लिए प्रोथॉम्बिन और पार्शियल थ्रोम्बोप्लास्टिन टाइम चेक किया जाता है।

रेटिकुलोसाइट काउंट

रेटिकुलोसाइट काउंट टेस्ट में नए रेड ब्लड सेल्स के वॉल्यूम की जांच की जाती है। क्योंकि जब कभी ब्लड लॉस होता है, तो बोन मैरो में ब्लड सेल्स का फॉर्मेशन होता है। इस टेस्ट की सहायता से बोन मैरो की ब्लड सेल्स प्रोडक्शन की क्षमता के बारे में पता लगाया जाता है।
 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button