भाजपा की राह बनेगी आसान, कांग्रेस को लगातार लग रहे झटके, निराधार नहीं है 400 पार का विश्वास
नई दिल्ली
लोकसभा चुनाव की शुरूआत में डेढ़ दो महीने की देर है, और पिछले एक डेढ़ महीने में पूरा विमर्श बदल गया है। अब चर्चा यह हो रही है कि अबकी बार 400 पार का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विश्वास सही साबित होगा या नहीं। लोगों की आशंका का आधार यह है कि राजीव गांधी की 414 सीट की जीत तो सहानुभूति लहर के कारण तब हुई थी जब हर राज्य में कांग्रेस की जड़ें मजबूत थी। अभी क्या है..?
जनकल्याण योजनाओं की पहुंच और भविष्य
ऐसा आकलन लगाने वाले लोग शायद इतिहास से भी कट चुके हैं और वर्तमान का अहसास नहीं कर रहे। ऐसे लोग पीएम मोदी की विश्ववसनीयता, जनकल्याण योजनाओं की पहुंच और भविष्य को लेकर सकारात्मकता को भी नहीं देख पा रहे हैं और वह इस सच्चाई को नजरअंदाज करना चाहते हैं कि चुनाव में काम और नाम यानी चेहरे की विश्वसनीयता अहम होता है। ऐसे लोग इतिहास के उस पन्ने से भी अनजान बन रहे हैं जो बताता है कि सबसे लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस वोटर संख्या के लिहाज से आज भी वहीं खड़ी है जहां आज से चालीस साल पहले थी।
प्रधानमंत्री का आत्मविश्वास
भाजपा के अधिवेशन में फिर से तीसरी बार वापसी को लेकर प्रधानमंत्री का आत्मविश्वास बोल रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि वह वोटरों तक पहुंच रहे हैं। भाजपा के माइक्रो मैनेजमेंट की बहुत चर्चा होती है। वह यही है जो प्रधानमंत्री ने कार्यकर्ताओं को हर बूथ पर 370 नए वोट जोड़ने के लक्ष्य के रूप में दिया है। कैसे जोड़ना है यह भी बताया गया है। कहा गया है कि पहली बार मतदाता सूची में जुड़े एक भी वोटर अछूते न रहें। हर लाभार्थी तक पहुंचे।
लक्ष्य आसान नहीं
सीमा पर बसे उन गांवों में भी व्यक्तिगत संपर्क बनाएं जहां जीवन आसान नहीं है। उन 161 सीटों पर अर्से से कवायद चल रही है जहां भाजपा जीत दर्ज नहीं कर पाई। एक हाथ में दस साल का रिपोर्ट कार्ड लेकर जाएं और दूसरे हाथ में अगले पांच साल का विजन। देश में 10 लाख से ज्यादा बूथ होते हैं और लगभग साढ़े आठ लाख बूथ पर भाजपा की पहुंच है। लक्ष्य आसान नहीं है लेकिन अगर इसका आधा भी हासिल कर लिया तो हर संसदीय क्षेत्र में भाजपा अपने खाते में लगभग दो लाख वोट जोड़ने में कामयाब रहेगी।
कांग्रेस का गिरता ग्राफ
नतीजा क्या होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है क्योंकि बड़ी संख्या में सीटों पर जीत हार का अंतर 25 हजार से एक लाख के बीच ही होता है। दूसरी तरफ का फर्क देखिए। देश में सबसे लंबे समय तक राज करने वाली मुख्य विपक्षी कांग्रेस ने राजीव गांधी के समय 414 का आंकड़ा छुआ था। तब देश में कुल वोटर की संख्या 38 करोड़ थी और वोट डालने वाले लगभग 24 करोड़ थे। कांग्रेस ने कुल वोटिंग का लगभग 50 फीसद हासिल किया था। बड़ी हैरानी की बात है कि तब से लेकर अब तक कांग्रेस चाहे सत्ता में रही हो या विपक्ष में उसके वोटरों की संख्या में वृद्धि नहीं हो रही है।
वोटरों को दोगुना करने की तैयारी
2004 के संप्रग काल में कांग्रेस को साढ़े दस करोड़ वोट मिले थे तो 2009 में 11.91 और 2019 में 11.94 करोड़। जबकि कुल वोटरों की संख्या में लगभग तीनगुनी वृद्धि हो चुकी है। 2024 के चुनाव में वोटरों की संख्या लगभग 98 करोड़ होगी। भाजपा 1984 के लगभग दो करोड़ वोटरों के मुकाबले 1019 में 23 करोड़ पर पहुंच चुकी है और अब इसे कम से कम दोगुना करने की तैयारी है। आपने काम और पीएम मोदी के नाम के सहारे भाजपा की नई रणनीति कुल वोटरों का पचास फीसद हिस्सा लेने की है। अगर यह संभव हुआ तो एक ऐसा इतिहास बनेगा किसी भी लोकतंत्र के लिए उदाहरण होगा।