छत्तीसगड़

पुस्तक नीतिपरक, रोचक और मार्गदर्शी: प्रदीप वर्मा

भिलाई

"पुस्तकों पर कम चचार्ओं के इस दौर में आचार्य डॉ. महेश चन्द्र शर्मा की आठवीं पुस्तक "गागर में सागर" पर समीक्षा संगोष्ठी विशेष प्रसंग है। वास्तव में इस के पीछे लेखक का कृतित्व और व्यक्तित्व है। डा. शर्मा संस्कृत और संस्कृति के महत्त्वपूर्ण चिन्तक हैं। उनका पूरा जीवन साहित्य, संस्कृति, शिक्षा और लेखन को समर्पित है। उनके अनुभव का निचोड़ उनके लेखन में सहज ही उपलब्ध है। लेखन जैसे बड़े काम के लिये बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा होना पड़ता है। आचार्य डॉ.महेश चन्द्र शर्मा में भी ये गुण है।" ये विचार हैं राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ.परदेशी राम वर्मा के।

डा. वर्मा आचार्य डॉ.महेश चन्द्र शर्मा की आठवीं पुस्तक "गागर में सागर" की समीक्षा संगोष्ठी में मुख्य अतिथि की आसन्दी से साहित्य प्रेमियों को सम्बोधित कर रहे थे। साहित्य सृजन परिषद, भिलाई द्वारा आयोजित उक्त संगोष्ठी में प्रसिद्ध कथाकार डॉ.वर्मा ने आगे कहा कि पं.महेश शर्मा ने गागर में सागर की रचना पं.विष्णु शर्मा की "पंचतंत्र" से प्रेरणा लेकर की ?है। वीणापाणि साहित्य समिति दुर्ग के अध्यक्ष एवं कवि प्रदीप वर्मा ने कार्यक्रम के अध्यक्ष की आसन्दी से कहा कि ये पुस्तक नीतिपरक और मार्गदर्शी ललित निबन्धों से सम्पन्न है। पुराने गहन चिन्तन परक सूत्रों में वर्तमान त्रासदियों को सुलझाने की? क्षमता है। पुस्तक में कोरे उपदेश नहीं, अपितु सात्विक जीवन जीने की कला है। गहन चिंतन परक आलेखों में प्रामाणिक और वैज्ञानिक तथ्यों का सम्प्रेषण है। प्रोफेसर डॉ.नलिनी श्रीवास्तव ने अपने समीक्षात्मक आलेख में बताया कि शब्द शास्त्री डॉ महेश चन्द्र की यह अनमोल कृति है। आचार्य डॉ.शर्मा मूर्धन्य विद्वान और बौद्धिक जगत के सशक्त हस्ताक्षर हैं।

अपनी इस अनुपम कृति में उन्होंने 108 निबन्धों में युवाओं का सन्मार्गदर्शन किया है। उनके लिये ये ज्योतिर्मय स्तम्भ है। महाकवि बिहारी  से प्रेरणा लेकर कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ व्यक्त करने में  सफल हुये हैं डॉ.शर्मा। बेरला के वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ.राजेन्द्र पाटकर "स्नेहिल" के आलेख में मनीषी रचनाकार डॉ.शर्मा की इस पुस्तक को पाठकों के लिये मार्गदर्शी बताया गया। यह आनन्द, उत्साह और आशा का अक्षय स्रोत भी है। डा.पाटकर के समीक्षात्मक आलेख का वाचन सुशिक्षिका एवं सुकवयित्री शुचि "भवि" ने किया। कवि त्रिलोकी नाथ कुशवाहा "अंजन" ने कहा कि किताब वास्तव में एक गोताखोर द्वारा प्राप्त 108 मोतियों की मणिमाला है। लेखकीय सम्बोधन में आचार्य महेश ने पुस्तक लेखन में गुरुजनों के शुभाशीष, परिवार के सहयोग और पाठकों की प्रेरणा आदि मुख्य कारणों का उल्लेख किया।

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