AAP ने इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग के तहत हरियाणा से तीन की मांग की
नई दिल्ली
आम आदमी पार्टी (AAP) ने इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग के तहत हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों में से तीन की मांग की है। इनमें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित दो सीटें भी शामिल हैं। आप के नए दावे ने कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है। इस मामले से परिचित लोगों के अनुसार, आम आदमी पार्टी ने अंबाला, कुरूक्षेत्र और सिरसा सीट पर अपना दावा ठोक दिया है। आपको बता दें कि अंबाला और सिरसा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटें हैं। अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने कहा कि वह तीन सीटों पर चुनाव लड़ना चाहेगी क्योंकि तीनों पंजाब की सीमा से लगती हैं। पंजाब में आप सत्ता में है और 2022 के विधानसभा चुनावों में भारी जीत हासिल की थी।
आपको यह भी बता दें कि फिलहाल हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है। जिस बात ने कांग्रेस के दावे को और कमजोर कर दिया है वह यह है कि 2014 में भी उसने केवल एक सीट (रोहतक) जीती थी। जबकि भाजपा ने सात और इनेलो ने दो सीटें जीती थीं।
आम आदमी पार्टी की मांग ने कांग्रेस की प्रदेश यूनिट को भारी झटका दिया है। पूर्व सीएम और कद्दावर जाट नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा ने राज्य के सभी सीटों पर प्रचार अभियान शुरू कर दिया है। कांग्रेस की हरियाणा ईकाई के अध्यक्ष और हुड्डा के वफादार उदय भान भी सक्रिय रूप से आप नेताओं को खेमा बदलने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। जानकार लोगों ने कहा कि हुड्डा अगले एक महीने में और अधिक लोगों को कांग्रेस में शामिल कराने की कोशिश कर रहे हैं।
ईटी ने हरियाणा कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के हवाले से बताया, ''यह स्पष्ट संकेत है कि कांग्रेस हरियाणा में प्रमुख विपक्षी पार्टी बनी हुई है। पार्टी आलाकमान के लिए भी एक संकेत है कि उसे नई नवेली पार्टी को अनावश्यक महत्व नहीं देना चाहिए।"
कांग्रेस के लिए हरियाणा में संतुलन बनाना मुश्किल दिख रहा है। लोकसभा चुनाव राज्य विधानसभा चुनाव से ठीक पहले होते हैं। पार्टी के आंतरिक सर्वेक्षणों से पता चला है कि राज्य में कांग्रेस और बीजेपी के बीच वोट प्रतिशत में भारी अंतर है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी 30% वोट शेयर का अंतर था। अगर कांग्रेस लोकसभा चुनाव इंडिया गठबंधन में शामिल दूसरे दलों से बिना गठबंधन के लड़ती है तो इस अंतर को पाटना मुश्किल होगा।
हालांकि आम आदमी पार्टी की मांगों पर सहमत होने का मतलब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राजनीतिक स्थान छोड़ना होगा। इसका मतलब कांग्रेस के भरोसेमंद क्षेत्रीय क्षत्रप हुड्डा को नाराज करना भी होगा। कांग्रेस के पास हरियाणा से कोई सांसद नहीं है, इसलिए सीटों पर उसका दावा पंजाब की तुलना में कमजोर है।