धर्म/ज्योतिष

प्रभु श्री राम के जल समाधि लेने के बाद हनुमान जी का क्या हुआ!

भगवान राम का निजधाम प्रस्थान

अश्विन पूर्णिमा के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अयोध्या से सटे फैजाबाद शहर के सरयू किनारे जल समाधि लेकर महाप्रयाण किया। श्रीराम ने सभी की उपस्थिति में ब्रह्म मुहूर्त में सरयू नदी की ओर प्रयाण किया। जब श्रीराम जल समाधि ले रहे थे तब उनके परिवार के सदस्य भरत, शत्रुघ्न, उर्मिला, मांडवी और श्रुतकीर्ति सहित हनुमान, सुग्रीव आदि कई महान आत्माएं मौजूद थीं।
 

दरअसल, गरुढ़ पुराण अनुसार,

‘अतो रोचननामासौ मरुदंशः प्रकीर्तितः रामावतारे हनुमान्रामकार्यार्थसाधकः।’ अर्थात ‘जब देवाधिदेव रामचंद्र अवतरित हुए तब उनके प्रतिनिधि मरुत् अर्थात वायुदेव उनकी सेवा और शुश्रुषा के हेतु उनके साथ अवतरित हुए जिन्हें सभी हनुमान इस नाम से जानते हैं।’
 

रामायण के बालकांड अनुसार,

‘विष्णोः सहायान् बलिनः सृजध्वम्’ अर्थात ‘भगवान विष्णु के सहायता हेतु सभी देवों ने अनेकों वानर, भालू और विविध प्राणियों के रूपमें जन्म लिया।’  अतः जब प्रभु राम स्वयं ही अपने धाम वापस चले गए तब सभी वानरों का इस मृत्युलोक में कार्य समाप्त हो चुका था। ऐसे में सवाल यह उठता है कि तब हनुमान जी कहां चले गए या उनका क्या हुआ?
 

कहते हैं कि श्रीराम के अपने निजधाम प्रस्थान करने के बाद हनुमानजी और अन्य वानर किंपुरुष नामक देश को प्रस्थान कर गए। वे मयासुर द्वारा निर्मित द्विविध नामक विमान में बैठकर किंपुरुष नामक लोक में प्रस्थान कर गए। किंपुरुष लोक स्वर्ग लोग के समकक्ष है। यह किन्नर, वानर, यक्ष, यज्ञभुज् आदि जीवों का निवास स्थान है। वहां भूमी के उपर और भूमी के नीचे महाकाय शहरों का निर्माण किया गया है। योधेय, ईश्वास, अर्ष्टिषेण, प्रहर्तू आदि वानरों के साथ हनुमानजी इस लोग में प्रभु रामकी भक्ति, कीर्तन और पूजा में लीन रहते हैं।
 

श्रीशुक उवाच। किम्पुरुषे वर्षे भगवन्तमादिपुरुषं लक्ष्मणाग्रजं सीताभिरामं रामं तच्चरण सन्निकर्षाभिरतः परमभागवतो हनुमान्सह किम्पुरुषैरविरतभक्तिरुपास्ते॥ – श्रीमद्भागवतम्
 

श्रील शुकदेव गोस्वामी जी ने कहाँ, “हे राजन्, किंपुरुष लोक में भक्तों में श्रेष्ठ हनुमान उस लोक के अन्य निवासियों के साथ प्रभु राम जो लक्ष्मण के बड़े भ्राता और सीता के पति है, उनकी सेवा में हमेशा मग्न रहते हैं।”

आर्ष्टिषेणेन सह गन्धर्वैरनुगीयमानां परमकल्याणीं भर्तृभगवत्कथां समुपशृणोति स्वयं चेदं गायति ॥- श्रीमद्भागवतम्
 

वहां गंधर्वों के समूह हमेशा रामचंद्र के गुणों का गान करते रहते हैं। वह गान अत्यंत शुभ और मनमोहक होता है। हनुमानजी और आर्ष्ट्रीषेण जो किंपुरुष लोक के प्रमुख है वे उन स्तुतिगानों को हमेशा सुनते रहते हैं।

किम्पौरुषाणाम् वायुपुत्रोऽहं ध्रुवे ध्रुवः मुनिः॥- ब्रह्म वैवर्त पुराण

किंपुरुष लोक के निवासियों में तुम मुझे वायुपुत्र हनुमान जानलो तथा ध्रुवलोक में मुझे ध्रुव ऋषि के रूप में देखो।  

प्रभु श्रीराम, विष्णु जी के 7वें मानव अवतार थे। और माता सीता उनकी धर्मपरायण पत्नी, जो माता लक्ष्मी का अवतार थीं। पद्म पुराण के अनुसार भगवान श्रीराम ने सरयु नदी में स्वयं की इच्छा से समाधि ली थी। लेकिन क्या आपको भगवान श्री राम की जल समाधि की पूरी कहानी पता है? माना जाता है कि प्रभु राम ने जल समाधि लेने से पहले हनुमान जी को एक बड़ी जिम्मेदारी से अवगत कराया और चिरंजीवी होने का वरदान दिया। आइए जानते हैं कि कैसे प्रभु राम ने जल समाधि से पहले हनुमान को सौंपा एक अहम् कार्य-

प्रभु श्री राम ने अपनी एक विशेष मुद्रिका लाने का जिम्मा हनुमान को सौंपा। हनुमान मुद्रिका लेने के लिए गहरे सरोवर में उतरते हैं लेकिन उनके सामने मुद्रिकाओं का भंडार होता है। जिसमें से भगवान राम की विशेष मुद्रिका ढूंढना उन्हें असंभव लगा क्योंकि सभी मुद्रिकाओं में राम-सीता की ही तस्वीर थी। इस स्थिति में हनुमान ने मुद्रिकाओं के विशाल भंडार को ही साथ ले जाने की युक्ति तलाशी। हनुमान ने बह्मा से उनका कमंडल मांगा जिसमें पूरा बह्माण्ड आ सकता है। बह्मा ने उनकी योजना को जाना और अपना कमंडल हनुमान को दे दिया।

इसी कमंडल में हनुमान मुद्रिकाओं का भंडार लेकर राम के पास पहुंचे और उनसे उनकी वो विशेष मुद्रिका न ढूढ पाने की बात कही। तब राम ने बताया कि ये सभी मुद्रिका उन्ही की ही हैं जो हर कल्प (कल्प हिन्दू समय चक्र की बहुत लंबी मापन इकाई है। मानव वर्ष अनुसार 360 दिन का एक दिव्य अहोरात्र होता है। इसी हिसाब से दिव्य 12000 वर्ष का एक चतुर्युगी होता है। 71 चतुर्युगी का एक मन्वन्तर होता है और 14 मन्वन्तर/ 1000 चतुरयुगी का एक कल्प होता है। एक कल्प को बह्मा का एक दिन भी माना जाता है) में बह्मा के पास ये मुद्रिकाएं एकत्रित हो गई हैं। इन मुद्रिकाओं के बारे में समझाते हुए रामजी ने हनुमान को अपनी जल समाधि के बारे में समझाया।

इसी दौरान श्री राम ने हनुमान से कहा कि तुम भी हर जन्म में मेरे साथ ही रहे हो। लेकिन इस बार पृथ्वी पर तुम्हें और भी कर्तव्य निभाना है। साथ ही सीता से लव-कुश का ख्याल रखने का लिया वादा भी तुम्हें निभाना है। भगवान राम ने हनुमानजी को भक्त से भगवान बनने की बात कही। इसी दौरान राम ने हनुमान को जगत की सेवा के लिए चिरंजीवी होने का वरदान दिया। यह प्रकरण सोनी टीवी पर प्रसारित होने वाले सीरियल ‘संकट मोचन महाबली हनुमान’ में दिखाया गया है।

कहां हैं किंपुरुष नामक क्षेत्र?

किंपुरुष नेपाल के हिमालययी क्षेत्र में आता है। प्राचीनकाल में जम्बूद्वीप के नौ खंडों में से एक किंपुरुष भी था। नेपाल और तिब्बत के बीच कहीं पर किंपुरुष की स्थिति बताई गई है। हालांकि पुराणों अनुसार किंपुरुष हिमालय पर्वत के उत्तर भाग का नाम है। यहां किन्नर नामक मानव जाति निवास करती थी। ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि इस स्थान पर मानव की आदिम जातियां निवास करती थीं। यहीं पर एक पर्वत है जिसका नाम गंधमादन कहा गया है।
 

गंधमादन पर्वत कहां हैं?

हनुमानजी कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं, ऐसा श्रीमद भागवत में वर्णन आता है। उल्लेखनीय है कि अपने अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके पांडव गंधमादन के पास पहुंचे थे। एक बार भीम सहस्रदल कमल लेने के लिए गंधमादन पर्वत के वन में पहुंच गए थे, जहां उन्होंने हनुमान को लेटे देखा और फिर हनुमान ने भीम का घमंड चूर कर दिया था।
 

गंधमादन में ऋषि, सिद्ध, चारण, विद्याधर, देवता, गंधर्व, अप्सराएं और किन्नर निवास करते हैं। वे सब यहां निर्भीक विचरण करते हैं। हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में (दक्षिण में केदार पर्वत है) स्थित गंधमादन पर्वत की। यह पर्वत कुबेर के राज्यक्षेत्र में था। सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक को उस काल में गंधमादन पर्वत कहा जाता था। आज यह क्षेत्र तिब्बत के इलाके में है। पुराणों के अनुसार जम्बूद्वीप के इलावृत्त खंड और भद्राश्व खंड के बीच में गंधमादन पर्वत कहा गया है, जो अपने सुगंधित वनों के लिए प्रसिद्ध था।

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