अघोरी और नागा साधु कैसे जीते है अपना जीवन
प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ की शुरुआत होने जा रही है, जिसमें तमाम अखाड़ों के साधु संत नजर आने वाले हैं. इसमें नागा साधु भी रहेंगे. साथ ही इस महाकुंभ में अघोरी साधु भी नजर आने वाले हैं. आज हम नागा और अघोरी साधुओं के बीच अंतर, इनकी दुनिया, इनका जीवन, इनके पूजा-पाठ आदि के बारे में आपको विस्तार से बतांएगे.
नागा साधु और उनका जीवन
नागा परंपरा अखाड़ों से निकली है. इस परंपरा का गुरू आदि शंकराचार्य को माना जाता है. नगा परंपरा को आठवीं शताब्दी के आस-पास का बताया जाता है. नागा साधु बनने की प्रक्रिया 12 सालों की होती है, जिसमें छह सालों को काफी अहम माना गया है. नागा साधु बनने की प्रक्रिया में सबसे प्रथम नागा साधु बनने आए व्यक्ति को ब्रह्मचर्य की शिक्षा दी जाती है. उसके बाद महापुरुष दिक्षा दी जाती है. फिर यज्ञोपवीत किया जाता है. फिर उससे उसके पूरे परिवार और स्वंय का पिंडदान कराया जाता है. नागा साधु हमेशा नग्न रहते हैं.
नागा साधु कैसे करते हैं पूजा
नागा साधु शस्त्र कला में पारंगत होते हैं. ये भगवान शिव के उपासक होते हैं. नागा साधु शैव पंरपरा से पूजा करते हैं. नागा साधु शिवलिंग पर भस्म, जल और बेलपत्र चढाते हैं. नागा साधुओं की पूजा में अग्नि और भस्म बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. नागा साधु गहन ध्यान और योग करते हैं. ध्यान और योग के जिरिये ही वो भगवान शिव में लीन होने की कोशिश करते हैं. नागा साधुओं का कार्य इंसानों और धर्म की रक्षा करना है. ये जीवन भर भिक्षा मांगकर अपना पेट पालते हैं. ये दिन में एक ही बार खाते हैं.
अघोरी साधु और उनका जीवन
अघोरी संस्कृत के शब्द अघोर से निकला है. अघोरी साधु भी नागाओं की तरह शिव के उपासक होते हैं. अघोरी भगवान शिव के साथ माता काली की भी पूजा-उपासना करते हैं. अघोरी साधु कपालिका परंपरा का पालन करते हैं. अघोरियों के शरीर पर राख लिपटी रहती है. रुद्राक्ष की माला और नरमुंड अघोरियों की वेशभूषा का हिस्सा है. अघोरी एकांत में रहते है. अघोरियों को कुंभ जैसे आयोजनों में ही सार्वजनिक रूप से देखा जा सकता है. अघोरियों की उत्पत्ति काशी से मानी जाती है. अघोरी शमशान में रहा करते हैं. अघोरी जीवन-मृत्यु के डर से दूर हो चुके होते हैं. अघोरी मांस, मदिरा का सेवन और तंत्र-मंत्र करते हैं.
अघोरी कैसे करते हैं पूजा
अघोर परंपरा के गुरू भगवान दत्तात्रेय माने जाते हैं. अघोरी साधु शिव को मोक्ष का रास्ता मानते हैं. अघोरी हमेशा भगवान शिव में मग्न होते हैं. हालांकि इनका शिव की पूजा या कहें कि साधना करने का तरीका नागा साधुओं से अलग होता है. अघोरी तीन तरह की साधना करते हैं, जिसमें शव, शिव और शमशान साधना शामिल है. शव साधना में मांस और मदिरा का भोग लगाया जाता है. वहीं शिव साधना में शव पर एक पैर पर खड़े होकर शिव की साधना की जाती है. शमशान साधना में हवन करना शामिल है.