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डूरंड लाइन क्रॉस कर पाकिस्तान में घुसे तालिबानी लड़ाके पाकिस्तानी चौकियों पर किया कब्जा

काबुल

पाकिस्तान और अफगानिस्तान इस समय एक दूसरे पर धड़ाधड़ हमले कर रहे हैं. डूरंड लाइन क्रॉस कर पाकिस्तान में घुसे अफगान के तालिबानी लड़ाके पाकिस्तानी चौकियों पर बम बरसा रहे हैं. इस बीच खबर आई कि तहरीकए-ए-तालिबान (टीटीपी) ने पाकिस्तानी सेना के एक पोस्ट पर कब्जा कर लिया. लेकिन अब इसे लेकर पाकिस्तानी सेना की सफाई आई है.

अफगानिस्तानी बॉर्डर पर पाकिस्तानी चौकी पर टीटीपी के कब्जे का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. कहा जा रहा है कि टीटीपी ने इस वीडियो को खुद जारी किया है. लेकिन अब पाकिस्तानी सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस पर सफाई देते हुए कहा है कि सेना की इस चौकी को हमले से कुछ समय पहले ही खाली कर दिया गया था.

उन्होंने कहा कि यहां से सैन्यकर्मियों को दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया गया था. यह प्रक्रिया सिर्फ बाजौर तक सीमित नहीं थी बल्कि उत्तरी और दक्षिणी वजीरिस्तान में भी इसी तरह सैन्यकर्मियों को चौकियों से हटा दिया गया था.

बता दें कि सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में तालिबानी लड़ाकों को पाकिस्तानी पोस्ट पर हथियारों के साथ जश्न मनाते देखा जा सकता है. उन्होंने आर्मी पोस्ट से पाकिस्तान का झंडा उखाड़कर टीटीपी का झंडा भी लहरा दिया.

अफगानी तालिबानी लड़ाकों और पाकिस्तानी सेना के बीच क्यों ठनी?

पाकिस्तानी सेना और अफगान लड़ाकों के बीच यह विवाद उस समय गहरा गया, जब तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने हाल ही में वजीरिस्तान के मकीन इलाके में पाकिस्तानी सेना के 30 जवानों को मार गिराया था. इसके जवाब में, पाकिस्तान ने एयरस्ट्राइक करके यह संदेश देने की कोशिश की थी कि वह अपने सैनिकों की हत्या बर्दाश्त नहीं करेगा.

अफगान तालिबान के पास भारी मात्रा में हथियार और दुर्गम इलाकों में छिपने की क्षमता है. उनके पास एके-47, मोर्टार, रॉकेट लॉन्चर जैसे आधुनिक हथियारों का विशाल भंडार है. इसके अलावा, तालिबानी लड़ाके उन पहाड़ों और गुफाओं से हमले करते हैं, जिनके बारे में पाकिस्तानी सेना को जानकारी तक नहीं है.

शहबाज शरीफ सरकार पहले से ही आर्थिक संकट, सीपैक प्रोजेक्ट में देरी और बलूचिस्तान में अलगाववाद जैसी समस्याओं से जूझ रही है. इन मुद्दों ने सरकार और सेना दोनों को कमजोर किया है. अब तालिबान के साथ टकराव ने इस संकट को और बढ़ा दिया है.

तालिबान की ताकत कितनी है?

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज की रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान के पास इस समय एक लाख 50 हजार एक्टिव लड़ाके हैं. तालिबान ने अफगानिस्तान के लिए अब तक रक्षा बजट का सार्वजनिक रूप से खुलासा नहीं किया है. अफगानिस्तान की सत्ता संभालने के बाद सेना को औपचारिक रूप देने के लिए स्पेशल फोर्स और आठ इन्फैंट्री कोर के अंतर्गत तीन बटालियन की नींव रखी गई.

तालिबान का मैनपावर सोर्स कबाइली इलाकों में बसे कबीले और उनके लड़ाके हैं. इसके अलावा कट्टर धार्मिक संस्थाएं, मदरसे भी उनके विचार को सपोर्ट कर रहे हैं. लेकिन इन सबसे ज्यादा पाकिस्तानी सेना और आईएसआई की सीक्रेट मदद तालिबान के लिए मददगार साबित हो रही है. अमेरिकी खुफिया आकलन भी जमीनी हालात को साफ करते हैं जिसमें कहा गया है कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के 6 महीने के भीतर अफगानिस्तान सरकार का प्रभुत्व खत्म हो जाएगा और तालिबान का शासन आ सकता है.

 

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