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पाकिस्तान और अफगानिस्तान खूनी जंग जारी, भारी मशीनगन और आधुनिक हथियारों से लैस तालिबानी लड़ाके

काबुल

पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और अफगानिस्तान इस समय खूनी जंग लड़ रहे हैं. अफगानिस्तान के तालिबानी लड़ाके डूरंड लाइन क्रॉस कर पाकिस्तान पर कहर बरपा रहे हैं. भारी मशीनगन और आधुनिक हथियारों से लैस तालिबानी लड़ाकोंने पाकिस्तानी चौकियों पर धावा बोल दिया है.  

अफगानिस्तान के पूर्वी पक्तिका प्रांत में प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के कैंपों पर पाकिस्तानी बमबारी के बाद से दोनों ओर हमले जारी हैं. गुलाम खान क्रॉसिंग पर तालिबानी लड़ाके धड़ाधड़ा हमले कर रहे हैं. पाकिस्तानी सेना का कहना है कि तालिबान बॉर्डर के पास उनकी चौकियों पर भारी और अत्याधुनिक हथियारों से हमला कर रहा है. वही, तालिबान का कहना है कि वह पाकिस्तान से सटी सीमा पर अराजक तत्वों को निशाना बना रहा है.

टोलो न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान के रक्षा मंत्रालय का कहना है कि डूरंड लाइन पर दोनों ओर से हिंसक झड़प हो रही है. तालिबान ने पाकिस्तानी सेना की दो चौकियों पर कब्जा कर लिया है. तालिबानी सैनिकों ने भारी हथियारों का इस्‍तेमाल कर डूरंड लाइन पर मौजूद पाकिस्‍तानी सेना की कई चौकियों को आग के हवाले कर दिया. इस दौरान पाकिस्तानी सेना के 19 सैनिकों की मौत हो गई और बाकी भाग खडे़ हो गए.

तालिबानी लड़ाके गोजगढ़ी, माटा सांगर, कोट राघा औऱ तरी मेंगल इलाकों में घुस गए हैं और जमकर गोलीबारी कर रहे हैं. इस बीच पाकिस्तानी सेना ने कहा कि उसने खुर्रम और उत्तरी वजीरिस्तान में घुसपैठ की कोशिशों को नाकाम कर दिया है.

क्या है तालिबान की रणनीति?

अफगान तालिबान लंबे समय से यह दिखाता आया है कि वह किसी भी बड़े सैन्य शक्ति के सामने झुकने वाला नहीं है. अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियों को उसने वर्षों तक चुनौती दी और आखिरकार उन्हें अफगानिस्तान से लौटने पर मजबूर कर दिया. पाकिस्तान के पास न तो वैसी सैन्य ताकत है और न ही आर्थिक क्षमता, जिससे वह तालिबान का सामना कर सके.

मीर अली बॉर्डर पर बढ़ती गतिविधियों के चलते पाकिस्तान ने भी अपनी सेना को अलर्ट पर रखा है. सीमाई इलाकों में सैनिकों की तैनाती तेज कर दी गई है. स्थानीय लोगों में डर का माहौल है और स्थिति किसी बड़े संघर्ष का संकेत दे रही है. तनाव बढ़ने के साथ ही यह देखना होगा कि पाकिस्तान और तालिबान के बीच यह टकराव किस ओर बढ़ता है.

तालिबान का उभार अफगानिस्तान से रूसी सैनिकों की वापसी के बाद 1990 के दशक की शुरुआत में उत्तरी पाकिस्तान में हुआ था. पश्तो भाषा में तालिबान का मतलब होता है छात्र खासकर ऐसे छात्र जो कट्टर इस्लामी धार्मिक शिक्षा से प्रेरित हों. कहा जाता है कि कट्टर सुन्नी इस्लामी विद्वानों ने धार्मिक संस्थाओं के सहयोग से पाकिस्तान में इनकी बुनियाद खड़ी की थी. तालिबान पर देववंदी विचारधारा का पूरा प्रभाव है. तालिबान को खड़ा करने के पीछे सऊदी अरब से आ रही आर्थिक मदद को जिम्मेदार माना गया.

शुरुआती तौर पर तालिबान ने ऐलान किया कि इस्लामी इलाकों से विदेशी शासन खत्म करना, वहां शरिया कानून और इस्लामी राज्य स्थापित करना उनका मकसद है. शुरू-शुरू में सामंतों के अत्याचार, अधिकारियों के करप्शन से आजीज जनता ने तालिबान में मसीहा देखा और कई इलाकों में कबाइली लोगों ने इनका स्वागत किया लेकिन बाद में कट्टरता ने तालिबान की ये लोकप्रियता भी खत्म कर दी लेकिन तब तक तालिबान इतना पावरफुल हो चुका था कि उससे निजात पाने की लोगों की उम्मीद खत्म हो गई.

 

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