तालिबान के 15 हजार लड़ाके पाकिस्तान की ओर बढ़े, पाकिस्तान की सेना और वायुसेना ने पेशावर और क्वेटा से सेना को तैनात
पेशावर
भारत के पड़ोस में खूनी जंग छिड़ती नजर आ रही है। पाकिस्तान और तालिबान की दोस्ती अब दुश्मनी में बदलने लगी है और दोनों देश एक-दूसरे के आमने-सामने आ गए। पाकिस्तान की एयरस्ट्राइक के बाद अब अफगानिस्तान ने भी बदला लेने की ठान ली है। 15 हजार तालिबानी लड़ाकों पाकिस्तान की ओर तेजी से बढ़ रहे है।
पाकिस्तान ने मंगलवार (24 दिसंबर) को देर रात अफगानिस्तान में एयर स्ट्राइक कर पाकिस्तानी तालिबान के संदिग्ध ठिकानों को निशाना बनाया था। एयरस्ट्राइक में कम से कम 46 लोग मारे गए हैं।
पाकिस्तान की ओर बढ़े तालिबानी लड़ाके
पाकिस्तान की एयरस्ट्राइक के बाद ही दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है। जानकारी के अनुसार तालिबान के 15000 लड़ाके काबुल, कंधार और हेरात से पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत से लगती मीर अली सीमा की ओर बढ़ रहे हैं। तालिबान के यह लड़ाके पाकिस्तान से एयरस्ट्राइक का बदला लेने के लिए तैयार हैं। तालिबान प्रवक्ता का कहना है कि पाकिस्तान को उसकी कार्रवाई का मुंहतोड़ जवाब मिलेगा।
'कायरतापूर्ण हमले का जवाब जरूर देंगे…'
वहीं, अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय ने पाकिस्तानी एयरस्ट्राइक की कड़ी निंदा की है और इसे अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन बताया। उसका आरोप है कि एयरस्ट्राइक में महिलाओं और बच्चों समेत आम लोगों को भी निशाना बनाया गया। रक्षा मंत्रालय ने इस पर कहा, 'अपनी मातृभूमि की रक्षा करना हमारा अधिकार है। हम इस कायरतापूर्ण हमले का जवाब जरूर देंगे।'
क्यों बढ़ा तनाव?
टीटीपी एक अलग आतंकवादी संगठन है, लेकिन इसे अफगान तालिबान का करीबी सहयोगी माना जाता है, जो अगस्त 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हुआ था। पाकिस्तान में पिछले दो दशक में बड़ी संख्या में आतंकवादी हमले हुए हैं, लेकिन हाल के महीनों में इनमें वृद्धि हुई है। TTP ने हाल ही में उत्तर-पश्चिम में एक जांच चौकी पर हमला किया था, जिसमें कम से कम 16 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे।
पाकिस्तानी अधिकारियों ने तालिबान पर साझा सीमा पर आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने का आरोप लगाया है। हालांकि, तालिबान सरकार ने पाकिस्तान के आरोप खारिज करते हुए कहा है कि वह किसी भी संगठन को किसी भी देश के खिलाफ हमले करने की इजाजत नहीं देती है।
क्या है तालिबान की रणनीति?
अफगान तालिबान लंबे समय से यह दिखाता आया है कि वह किसी भी बड़े सैन्य शक्ति के सामने झुकने वाला नहीं है. अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियों को उसने वर्षों तक चुनौती दी और आखिरकार उन्हें अफगानिस्तान से लौटने पर मजबूर कर दिया. पाकिस्तान के पास न तो वैसी सैन्य ताकत है और न ही आर्थिक क्षमता, जिससे वह तालिबान का सामना कर सके.
मीर अली बॉर्डर पर बढ़ती गतिविधियों के चलते पाकिस्तान ने भी अपनी सेना को अलर्ट पर रखा है. सीमाई इलाकों में सैनिकों की तैनाती तेज कर दी गई है. स्थानीय लोगों में डर का माहौल है और स्थिति किसी बड़े संघर्ष का संकेत दे रही है. तनाव बढ़ने के साथ ही यह देखना होगा कि पाकिस्तान और तालिबान के बीच यह टकराव किस ओर बढ़ता है.
तालिबान का उभार अफगानिस्तान से रूसी सैनिकों की वापसी के बाद 1990 के दशक की शुरुआत में उत्तरी पाकिस्तान में हुआ था. पश्तो भाषा में तालिबान का मतलब होता है छात्र खासकर ऐसे छात्र जो कट्टर इस्लामी धार्मिक शिक्षा से प्रेरित हों. कहा जाता है कि कट्टर सुन्नी इस्लामी विद्वानों ने धार्मिक संस्थाओं के सहयोग से पाकिस्तान में इनकी बुनियाद खड़ी की थी. तालिबान पर देववंदी विचारधारा का पूरा प्रभाव है. तालिबान को खड़ा करने के पीछे सऊदी अरब से आ रही आर्थिक मदद को जिम्मेदार माना गया.
शुरुआती तौर पर तालिबान ने ऐलान किया कि इस्लामी इलाकों से विदेशी शासन खत्म करना, वहां शरिया कानून और इस्लामी राज्य स्थापित करना उनका मकसद है. शुरू-शुरू में सामंतों के अत्याचार, अधिकारियों के करप्शन से आजीज जनता ने तालिबान में मसीहा देखा और कई इलाकों में कबाइली लोगों ने इनका स्वागत किया लेकिन बाद में कट्टरता ने तालिबान की ये लोकप्रियता भी खत्म कर दी लेकिन तब तक तालिबान इतना पावरफुल हो चुका था कि उससे निजात पाने की लोगों की उम्मीद खत्म हो गई.
अफगान और तालिबान की सैन्य ताकत कितनी?
तालिबान की ताकत कितनी है कि वह अफगानिस्तान की सेना पर भारी पड़ रहा? अफगानिस्तान के फर्स्ट वाइस प्रेसिडेंट कहते हैं- 'तालिबान का जल्द खात्मा होगा. उनके पास 80 हजार के करीब लड़ाके हैं और अफगानिस्तान की सेना के पास 5 से 6 लाख के बीच सैनिक. इसके अलावा अफगानिस्तान के पास वायु सेना है जो तालिबान पर भारी पड़ेगी.' हालांकि, इस दावे के बावजूद कई ऐसे फैक्ट हैं जो जमीनी स्तर पर तालिबान को मजबूत साबित कर रहे हैं.
तालिबान का मैनपावर सोर्स कबाइली इलाकों में बसे कबीले और उनके लड़ाके हैं. इसके अलावा कट्टर धार्मिक संस्थाएं, मदरसे भी उनके विचार को सपोर्ट कर रहे हैं. लेकिन इन सबसे ज्यादा पाकिस्तानी सेना और आईएसआई की सीक्रेट मदद तालिबान के लिए मददगार साबित हो रही है. अमेरिकी खुफिया आकलन भी जमीनी हालात को साफ करते हैं जिसमें कहा गया है कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के 6 महीने के भीतर अफगानिस्तान सरकार का प्रभुत्व खत्म हो जाएगा और तालिबान का शासन आ सकता है.