मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ विभागों को अब 3 महीने के अंदर ही कार्रवाई की अनुमति देनी होगी
भोपाल
मध्य प्रदेश में अब भ्रष्ट अफसर-कर्मचारी प्रकरण दर्ज होने के बाद अधिक समय तक अभियोजन से नहीं बच पाएंगे। अभियोजन पर सहमति या असहमति के लिए सरकार ने 3 माह की अवधि तय कर दी है। यही नहीं अब हर मामला सीधे विभाग नहीं आएगा, बल्कि नियुक्तिकर्ता अधिकारी ही सहमति या असहमति दे सकेंगे। हर अभियोजन स्वीकृति में विधि विभाग का अभिमत अनिवार्य होगा। सामान्य प्रशासन विभाग ने सोमवार देर रात इसके आदेश जारी किए।
नियुक्तिकर्ता अधिकारी भी मंजूरी दे सकेंगे, कैबिनेट के लिए भी 45 दिन तय
पहला बदलाव- भ्रष्टाचार या घूसखोरी का केस दर्ज होता है तो सीधे नियुक्तिकर्ता अधिकारी ही अभियोजन स्वीकृति दे सकेंगे। उदाहरण- किसी पंचायत सचिव के खिलाफ केस दर्ज होता है तो सहमति जिला पंचायत सीईओ दे पाएंगे। इसके बाद विभाग की सहमति जरूरी नहीं होगी। अब तक… विभाग की सहमति जरूरी होती थी। इसलिए हर बड़े-छोटे मामले सरकार तक आते थे।
नियुक्तिकर्ता अधिकारी प्रकरण का परीक्षण कर जांच एजेंसी को भेजेगा। जांच एजेंसी चालान प्रस्तुत कर अधिकारी को सूचित करेगी। इसके बाद विधि विभाग इसमें फॉलोअप लेगा। पूरी प्रक्रिया 45 दिन में होगी। अब तक… विधि विभाग से अभिमत अनिवार्य नहीं था।
दूसरा बदलाव- यदि नियुक्तिकर्ता अधिकारी असहमत है तो वह कारण सहित विधि विभाग को भेजेगा। इसके बाद विधि विभाग अपना अभिमत संबंधित विभाग को भेजेगा। यदि दोनों विभाग आपस में सहमत नहीं हैं तो मामला संबंधित विभाग के जरिए कैबिनेट में आएगा। अब तक… कैबिनेट में पहले समय सीमा तय नहीं थी। अब कैबिनेट को 45 दिन में निर्णय लेना होगा। इस तरह कुल 90 दिन यानी 3 महीने लगेंगे।
तीसरा बदलाव- किसी अफसर या कर्मचारी के खिलाफ यदि निजी परिवाद आता है तो उस स्थिति में संबंधित का पक्ष सुनना जरूरी होगा। सुनवाई के बाद 3 माह में प्रकरण का निराकरण करना होगा।