देश

जाने किन वजहों से राजीव गांधी ने खुलवाया था राम मंदिर का ताला? पढ़िए क्या है वो पूरी कहानी

अयोध्या/ नई दिल्ली

 राम मंदिर के उद्घाटन की तारीख 22 जनवरी तय है। इस उद्घाटन से पहले कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में जुबानी जंग चल रही है। कर्नाटक में मंत्री और कांग्रेस नेता ने कहा कि बीजेपी राम मंदिर का श्रेय ले रही है कि जबकि जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने राम जन्मभूमि मंदिर का ताला खुलवाने के लिए कदम उठाए थे। लेकिन राम मंदिर के लिए आंदोलन से लेकर रथ यात्रा की शुरुआत में बीजेपी ने बढ़त बनाई थी। कहा जाता है कि, 1985 में शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदलने के बाद से राजीव विपक्ष के निशाने पर थे। लोग कांग्रेस सरकार से थोड़े बिदके हुए थे। ऐसे में विरोधियों की आवाज दबाने के लिए राजीव ने 1986 में उस समय के यूपी के सीएम वीर बहादुर सिंह को मनाकर अयोध्या में राम मंदिर का ताला खुलवाने की पहल की थी।

शाहबानो के बाद हिंदुओं को लुभाने की कोशिश

1985 में, प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शाह बानो मामले में मुस्लिम धर्मगुरुओं के सामने झुकने का निर्णय लिया था। राजीव ने शीर्ष अदालत के फैसले को पलटते हुए संसद से कानून पास करवा दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि शाह बानो को अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता पाने का हक है। राजीव ने शरिया कानून के अनुरूप गुजारा भत्ता व्यवस्था को खत्म करने वाला एक कानून बनाया था। राजीव के इस फैसले का देश में विरोधियों ने काफी निशाना बनाया था।

राजीव का राम मंदिर पर फैसला

शाहबानो प्रकरण से विपक्षियों के निशाने पर आए राजीव ने इसके अगले ही साल हिंदुओं को लुभाने का दांव चला। 1985 में ही राजीव गांधी के कहने पर दूरदर्शन पर रामानंद सागर की रामायण का प्रसारण शुरू हुआ था। इसके बाद शाह बानो प्रकरण के बाद राजीव ने हिंदुओं को भी कुछ देने की मंशा से कुछ महीने बाद ही राजीव ने राम मंदिर का ताला खुलवा दिया था। राजीव ने इसके लिए उस समय के यूपी के सीएम वीर बहादुर सिंह को मनाया और राम जन्मभूमि के ताले खुलवाए। राजीव के फैसले से पहले राम मंदिर में पुजारी को साल में केवल एक बार पूजा करने का अधिकार था। 1949 में यहां भगवान राम की मूर्ति स्थापित की गई थी।

राजीव ने राम मंदिर पर आम राय बनाने की बात कही थी

हालांकि, राजीव के इस फैसले के बाद भी अयोध्या के समीकरण में कोई खास बदलाव नहीं आया था। बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमिटी और विश्व हिंदू परिषद पहले के तरह अपने मिशन में लगे रहे थे। दूसरी तरफ राजीव के 1986 के फैसले के बाद कई लोगों ने इसे अलग-अलग तरीके से व्याख्या की। हिंदू और मुस्लिम दोनों इस जगह पर अपना दावा कर रहे थे। राजीव के फैसले के बाद लोगों ने इसे हिंदुओं के दावे को पुख्ता बताया। 1989 में चुनावी भाषणों के दौरान राजीव गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि इसपर आम राय बनान की कोशिश जारी है और अयोध्या में ही राम मंदिर बनेगा।

मुखर्जी ने राजीव के फैसले को गलत बताया था

सुब्रमण्यम स्वामी ने दावा किया था कि अगर 1989 में अगर राजीव गांधी पीएम बन गए होते तो राम मंदिर के लिए प्रयास और तेज हो गए होते। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि 1 फरवरी 1986 को राम जन्मभूमि मंदिर का ताला खुलवाना सही फैसला नहीं था। उन्होंने तो यहां तक कहा था कि यह सही नहीं था। मुखर्जी ने अपनी किताब The Turbulent Years: 1980-96 में इस बात का जिक्र किया है।
राजीव के बाद रास्ता भटकी कांग्रेस!

राजीव गांधी ने ही 1989 में विश्व हिंदू परिषद को राम मंदिर के शिलान्यास की अनुमति दी थी। तब देश के तत्कालीन गृह मंत्री बूटा सिंह को भी शिलान्यास में भाग लेने के लिए भेजा गया था। इसके बाद राम मंदिर के लिए पहली ईंट लगाई गई थी। 1991 में राजीव गांधी की लिट्टे के आतंकियों ने हत्या कर दी थी। इसके बाद कांग्रेस ने इस मुद्दे को उतनी तवज्जो नहीं दी। हालांकि, कांग्रेस पीएम पी वी नरसिम्हा राव के समय में ही बाबरी मस्जिद गिराई गई थी। इसके कुछ समय बाद 1993 में राव सरकार ने विवादित जमीन के अधिग्रहण के लिए एक अध्यादेश लाई थी। इस अध्यादेश को 7 जनवरी 1993 को तत्कालीन राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने मंजूरी दी ती। फिर इसे उस समय के गृह मंत्री एसबी चव्हाण ने लोकसभा में मंजूरी के लिए रखा था। इसके पास होने के बाद इसे अयोध्या एक्ट के नाम से जाना गया था। इस कानून के तहत केंद्र सरकार ने 2.77 एकड़ विवादित जमीन के साथ चारो तरफ 60.70 एकड़ जमीन को अपने कब्जे में ले लिया था। उस समय सरकार की योजना वहां राम मंदिर, एक मस्जिद, लाइब्रेरी, म्यूजियम और अन्य सुविधाओं को बनाने की थी।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button