छत्तीसगड़

शिफ्टिंग के नाम रेलवे ने हरियाली पर चलाई कुल्हाड़ी, मौके पर मिले ठूंठ और लकड़ियों के टुकड़े

बिलासपुर

वृक्षों की शिफ्टिंग की सूचना देकर रेलवे हरियाली ही साफ कर दी। मौके पर मिले ठूंठ और लकड़ियों के टुकड़े इसका प्रमाण है। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के इस मामले की शिकायत मिलते ही वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची। उन्हें बड़ी संख्या में ठूंठ मिले। इसके अलावा कटाई के संबंध में जब मौके पर मौजूद ठेकेदार व कर्मचारियों से अनुमति के दस्तावेज मांगें तो वह नहीं उपलब्ध करा सके। हालांकि कुछ पेड़ों को नई जगह पर शिफ्ट किया गया।

टीम ने उस जगह का भी मुआयना किया। लेकिन, अधिकांश वृक्ष सूख चुके थे। जिसे देखकर विभाग का अमला नाराज हुआ। उन्होंने कहा कि पेड़ एक से दूसरी जगह पर स्थानांतरित करना आसान नहीं होता है। यह वृक्ष भी जीवित रहेंगे या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है। जिस जगह पर हरे- भरे वृक्षों के ठूंठ व कटी लकड़ियां मिलीं है, दरअसल वहां रेलवे वंदे भारत ट्रेनों के बेहतर रखरखाव के लिए डिपो का निर्माण करा रही है। स्थानांतरित की बजाय रेलवे पेड़ों को काट दिया। इस मामले की शिकायत मिलने के बाद बुधवार को बिलासपुर वन परिक्षेत्र के डिप्टी रेंजर अन्य वनकर्मियों को लेकर जांच करने पहुंचे।

टीम पहले उस जगह पर पहुंची, जहां से वृक्षों को स्थानांतरित करने की बात कही जा रही थी। एफसीआई गोदाम के इस हिस्से में टीम को कई वृक्षाें के ठूंठ नजर आए। इतना ही नहीं वृक्षों की कटाई के बाद लकड़ियां एक किनारे डंप की गई थी। कुछ दूर आगे भारी मात्रा में वृक्षों के ऊपरी हिस्से की कटी डंगाल पड़ी हुई थी।
जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कितनी बड़ी संख्या में वृक्षों की कटाई की गई है। हालांकि इस जगह पर रेलवे ने कुछ पेड़ शिफ्ट किए हैं। लेकिन, वह भी सूख गए है। वृक्षों को देखकर टीम हैरान भी रही। उनका कहना था कि रेलवे ने वृक्षों को उखाड़कर यहां लगा दिया। इससे रिप्लांट किसी भी सूरत में सफल नहीं हो सकता। वन विभाग रेलवे ने किसी तरह अनुमति नहीं ली है।

विभाग ने बताया इन प्रक्रियाओं का करना होता है पालन, जो नहीं किया
    किसी भी पेड़ दोबारा लगाने के लिए उखाड़ा नहीं जाता बल्कि खोदकर निकाले जाते हैं ताकि जड़ के साथ मिट्टी भी निकले।
    जहां पेड़ लगने हैं, वहां की मिट्टी और जहां पहले लगे थे, उन दोनों की मिट्टी परीक्षण कराया जाता है। मिलान होने पर प्लांटेशन होता है। परीक्षण लैब में कराना है।
    पुराने जगह से ज्यादा के हिस्से में प्लांटेशन करने के लिए गड्डा खोदा जाता है।
    पटाव के लिए वहीं मिट्टी लानी पड़ती है। इसके बाद 15 दिन तक का गोबर डाला लाता है। तब जाकर उस जगह पेड़ लगाए जा सकते हैं।
    प्लांटेशन का समय जून व जुलाई का महीना होता है।
    दोबारा पेड़ लगाने के लिए उसे उखाड़ने के 90 मिनट बाद रोपण करना अनिवार्य होता है।
    डंगालों की छटाई होनी चाहिए। ताकि तेज हवा या अन्य कारणाें से पेड़ की जड़ न हिले।

ट्रैक्टर से हो रहा था परिवहन
जांच के दौरान टीम को एक ट्रैक्टर भी नजर आया। जब चालक से पूछताछ की गई तो उसने बताया कि इसी से कटे पेड़ों की लकड़ियों का परिवहन कर रहा है। रेलवे ने शिफ्टिंग की योजना बनाई थी तो पेड़ काटकर लकड़ियों को कहा डंप किया जा रहा है, यह भी जांच का विषय है।

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